________________ 191 परिग्रह के गुणनिष्पन्न नाम **************************************************************** परिग्रह के गुणनिष्पन्न नाम तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा - 1. परिग्गहो 2. संचयो 3. चयो 4. उवचयो 5. णिहाणं 6. संभारो 7. संकरो 8. आयरो 9. पिंडो 10. दव्वसारो 11. तहा महिच्छा 12. पडिबंधो 13. लोहप्पा 14. महद्दी 15. उवकरणं 16. संरक्खणा य 17. भारो 18 संपाउप्पायओ 19. कलिकरंडो 20. पवित्थरो 21. अणत्थो 22. संथवो 23. अगुत्ति * 24. आयासो 25. अविओगो 26. अमुत्ती 27. तण्हा. 28. अणत्थओ 29. आसत्ती 30. असंतोसो त्ति वि य, तस्वस एयाणि एवमाईणि णामधिज्जाणि होति तीसं। शब्दार्थ - तस्स - उस, णामाणि- नाम, गोण्णाणि - गुण-निष्पन्न, होति - हैं, तीसं - तीस, तं जहा - जैसे कि, परिग्गहो - परिग्रह, संचयो - संचय, चयो - चय, उवचयो - उपचय, णिहाणं - निधान, संभारो - सम्भार, संकरों - संकर, आयरो - दर, पिंडो - पिंड, दव्वसारो - द्रव्वयसार, महिच्छामहती इच्छा, पडिबंधो - प्रतिबंध, लोहप्पो - लोभात्मा, महद्दी - महती याचना, उवकरणं - उपकरण, संरक्खणा - संरक्षण, भारो - भार, संपाउप्पायओ - सम्पातोत्पादक, कलिकरंडो - कलह और पाप का स्थान, पवित्थरो - धन-धान्यादि का विस्तार, अणत्थो - अनर्थ, संथवो - संस्तव, अगुत्तिअगुप्ति-इच्छा का अनिरोध, आयासो - खेद का कारण, अविओगो - अवियोग, अमुत्ती - अमुक्ति, तण्हा - तृष्णा, अणत्थओ - अनर्थक, आसत्ती - आसक्ति, असंतोसो - असंतोष, एयाणि - ये, एंवमाईणि - इस प्रकार के, णामधिज्जाणि - नाम, होति - हैं। भावार्थ - इस अधर्म के गण-निष्पन्न तीस नाम हैं। यथा - 1. परिग्रह 2. संचय 3. चय 4. उपचय 5. निधान (भूमि में धरा हुआ) 6. संभार (कोठे आदि में भर कर रखा हुआ) 7. संकर (स्वर्णादि के पासे रूप) 8. आदर (प्राप्ति के प्रयत्न में संताप एवं भय-मूलक) 9. पिंड़ (संगठित रखा हुआ) 10. द्रव्यसार (सर्वोत्तम) 11. महेच्छा 12. प्रतिबन्ध (बन्धनरूप) 13. लोभारमा 14. महती याचना 15. उपकरण 16. संरक्षण 17. भार 18. सम्पातोत्पादक (अनर्थ एवं पाप का उत्पादक) 19. कलिकरण्ड (कलह का भाजन) 20. प्रविस्तार (वृद्धि करना) 21. अनर्थ 22. संस्तव (परिचय कारक) 23. अगुप्ति (संतोष का अभाव) 24. आयास (खेदकारक) 25. अवियोग (नहीं छुटने वाला) 26. अमुक्ति (बन्धन कारक) 27. तृष्णा 28. अनर्थक 29. आसक्ति और 30. असंतोष, ये और इस प्रकार के तीस नाम हैं। .. + श्री ज्ञानविमलीय प्रति में २३वाँ नाम 'अकीत्ति' है और 'अगुत्ति' तथा 'आयासो' को एक ही गिना है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org