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एक्कमेक्कं
एक-दूसरे को, मणुयगणा मनुष्यगण, बाणरा वानर- बन्दर, पक्खी - पक्षी, विरुज्झंति - विरोध करते हैं, मित्ताणि मित्र भी, खिप्पं हवंति शीघ्र हो जाते हैं, सत्तू शत्रु, समएसिद्धान्त का, धम्मे धर्म का, गणे गण का, भिति भेदन करते हैं, पारदारी
परस्त्री में लुब्ध, धम्मगुणरया - धर्म तथा गुणों में लीन रहने वाले, बंभयारी - ब्रह्मचारी भी, खणेण क्षणमात्र में - शीघ्र ही उल्लो - भ्रष्ट हो जाते हैं, चरित्ताओ- चारित्र से, जसमंतो यशस्वी भी, सुव्वया उत्तम व्रतधारी भी, पावेंति प्राप्त करते हैं, अयसकित्तिं अयशकीर्ति, रोगत्ता - रोगपीड़ित, वाहिया - व्याधिग्रस्त, पवšति - बढ़ाते हैं, रोगवाही - रोग एवं व्याधि, दुवे य लोया- दोनों लोक, दुआराहगा
परलोक, परस्सदाराओ पराई
केइ
कोई पुरुष, परस्सदारं -
दुराराध्य, हवंति - होते हैं, इहलोए चेव - इस लोक और परलोए पत्नियों से, जे अविरया जो विरत नहीं होते हैं, तहेव जैसे कि, पराई स्त्री की, गवेसमाणा - खोज करते हुए, गहिया पकड़े जाते, हया मारे जाते, बद्धरुद्धा बाँध कर रोके जाते हैं, एवं इस प्रकार, जाव यावत्, गच्छंति जाते हैं, विउलमोहाभिभूयसण्णाविपुल मोह-महामोह से अभिभूत बुद्धि वाले।
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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ ० ४
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भावार्थ - मैथुन की लालसा में आसक्त, मोह-मद में सराबोर जीव, एक दूसरे को मार डालते हैं । वे विषय रूपी विष की उदीरणा करने वाली पर स्त्रियों में आसक्त होते । जब उनकी आसक्ति का दूसरों (उन स्त्रियों के पति संरक्षकादि या अन्य प्रेमियों) को पता लगता है, तो वे उस पर - स्त्री लम्पट को मार डालते हैं। पर स्त्री लम्पट, धननाश तथा कुटुम्ब विनाश रूपी दुःख भोगते हैं। जो पुरुष पर-स्त्री भोग के पाप से विरत नहीं होते, उनकी दुर्दशा होती है। मैथुनेच्छा में आसक्त एवं वेद-मोह में भरपूर मनुष्य, घोड़े, हाथी, वृषभ, भैंसे और मृग (अपनी ही जाति में) एक-दूसरे को मारते हैं। मनुष्यगण, वानर और अन्य पशु-पक्षी भी विषयेच्छा में लुब्ध होकर परस्पर लड़ते-झगड़ते हैं। पर - स्त्री के मोह में लुब्ध होकर मनुष्य अपने मित्र का भी शत्रु बन जाता है। धर्म-सिद्धान्त और उत्तम मर्यादा तथा नैतिकता का उल्लंघन करता है। संयम और ब्रह्मचर्य में लीन रहने वाले ब्रह्मचारी भी मैथुनसंज्ञा में गृद्ध होकर चारित्र से भ्रष्ट हो जाते हैं। जिन विशिष्ट पुरुषों का यश सर्वत्र व्याप्त है, ऐसे यशस्वी और उत्तम व्रतधारी भी वेदमोह में आसक्त होकर अपयश एवं निन्दा के पात्र बन जाते हैं। मैथन गृद्ध व्यक्ति अनेक प्रकार के रोगों का घर बन जाता है। उसकी व्याधियाँ बढ़ती रहती है। पर स्त्रीगामी मनुष्य का यह लोक और परलोक दोनों लोक बिगड़ जाते हैं। वह दोनों लोक का विरोधक होता है।
पर- स्त्री को प्राप्त करने के लिए लुक-छिप कर जाने वाले कई पुरुष, उस स्त्री के पति आदि सम्बन्धी अथवा राज्य कर्मचारी द्वारा पकड़े जाकर बन्दी बनाये जाते हैं, कारागृह में डाल दिये जाते हैं और अनेक प्रकार की ताड़ना तर्जना सहते हुए यावत् मृत्यु प्राप्त कर नरक में चले जाते हैं। इस प्रकार जिन पुरुषों का मन महामोहनीय के उदय से भरा हुआ है, वे मैथुनासक्त होकर अनेक प्रकार के दुःख के भोक्ता बन जाते हैं।
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