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________________ १७४ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०४ *********************************************************** सिंह, वृषभ और हस्ती के कन्धे के समान पुष्ट, दृढ़ एवं विस्तीर्ण है, चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसग्गीवा - उनकी गर्दन उत्तम शंख के समान चार अंगुल प्रमाण वाली होती है, अवट्ठियसुविभतचित्तमंसू - उनकी मूंछे अवस्थित-न बड़ी, न छोटी प्रमाणयुक्त तथा विचित्र शोभा वाली होती है, उवचियमंसलपसत्थसहुलविउलहणुया - उनका जबड़ा या ठुड्डी सार्दुल सिंह के समान मांसल, विशाल एवं प्रशस्त होती है, ओयवियसिलप्पवालबिंबफलसण्णिभाधरोहा - उनका अधरोष्ठ संस्कारित शिलप्रवाल और बिंबफल के समान लाल होता है, पंडुरससिसकलविमलसंखगोखीरफेणकुंददगरयमुणालियाधवलदंतसेढी - उनके दाँतों की पंक्ति निर्मल चन्द्र, शंख, गाय के दूध के फेणझाग कुन्दपुष्प, जलप्रवाह में उछलते हुए कणों-जलकण और कमलिनी के मूल-मृणाल के समान निर्मल तथा श्वेत होती है, अखंडदंता - उनके दाँत अखंड-पूर्ण होते हैं, अप्फुडियदंता - अस्फुटितबिना कटे हुए-तड़ रहित, अविरलदंता - अविरल-अन्तर रहित-घने दाँत, सुणिद्धदंता - स्निग्ध-चिकने दाँत, सुजायदंता - सुनिर्मित-सुन्दर दाँत, एगदंतसेढिव्व अणेगदंता - एक पंक्ति में समान रूप से रहे हुए अनेक दाँत वाले, हुयवहणिद्धंतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततला - आग से जिसका मैल जला दिया और धोकर निर्मल बना दिया ऐसे स्वर्ण के समान लाल तल हैं जिनके ऐसे (तालुजीहा) तालु और जिव्हा वाले, गरुलायतउज्जुतुंगणासा - उनकी नासिका गरुड़ की चोंच जैसी लम्बी, ऊंची और सीधी होती है, अवदालियपोंडरीयणयणा - विकसित हुए पुण्डरीक-श्वेत कमल के समान आँखें हैं जिनकी, कोकासियधवलपत्तलच्छा - प्रमुदित एवं धवल है उनकी भौंह युक्त आँखें, आणामियचावरुइलकिण्हब्भराजिसंठियसंगयायसुजायभुमगा - उनकी भ्रकुटी धनुष के समान वक्र, कृष्ण रोमराजि से परिपूर्ण विशाल और सुन्दर होती है, अल्लीणपमाणजुतसंवणा - उनके कान सुन्दर तथा प्रमाण युक्त, सुसवणा - अच्छी श्रवण शक्ति वाले होते हैं, पीणमंसलकवोलदेसभागा- उनके कपोल गाल पुष्ट एवं मांसल होते हैं, अचिरुग्गयबालचंदसंठियमहाणिलाडा - उनका महा ललाट बाल चन्द्रअष्टमी के चन्द्रमा के समान आकृति वाला होता है, उडुवइरिवपडिपुण्णसोमवयणा - उनका मुख पूर्णचन्द्रमा के समान सौम्य होता है, छत्तागारुतमंगदेसा - जिनका मस्तक छत्र के समान होता है घणणिचियसुबद्धलक्खणुण्णयकुडागारणिभपिंडियग्गसिरा - मस्तक का अग्रभाग लोह-मुद्गर के समान सुदृढ़ स्नायुओं से आबद्ध उत्तम लक्षणों से युक्त तथा शिखर के समान गोल एवं उन्नत होता है हुयवहणिद्धंतधोयतत्ततवणिज्जरत्तकेसंतकेसभूमी - उनके मस्तक की चमड़ी-केशभूमि अग्नि में तपाये हुए सोने के समान लाल होती है, सामलिपोंडघणणिचियछोडियमिउविसतपसत्थसुहुमलक्खणसुगंधिसुंदरभुयभोयगभिंगणीलकज्जलपहट्ठभमरगणणिद्धणिगुरुंबणिचियकुंचियपयाहिणावत्तमुद्धसिरयाउनके मस्तक के बाल शाल्मली वृक्ष के समान अत्यन्त घन, सुकुमार सूक्ष्म, शुभ लक्षण युक्त, सुगंध वाले भुजमोचक रत्न, काजल तथा प्रसन्न भ्रमर समूह के समान काले, चिकने और दक्षिण की ओर मुड़े हुए होते हैं, सुजायसुविभत्तसंगयंगा - उनके अंगों की रचना अत्यन्त सुन्दर एवं सुघड़ होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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