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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०१ ********************* **************** ************** पानी नहीं होता। वह पृथ्वी का एक हिस्सा होता है। उसमें बाहर से पानी आता है। तदनुसार आत्मा में अपने-आप में कर्म नहीं होते, किन्तु बाहर से कर्म का आगमन होता है। जिन द्वारों-कारणों से कर्म का आगमन होता है, वे कारण ही 'आस्रव' कहलाते हैं।
___ आस्रव के दो भेद हैं - द्रव्यास्रव और भावास्रव। कर्म का आगमन-द्रव्य आस्रव है और इस द्रव्य आस्रव का मूल कारण है-भावात्रव-आत्मा के आस्रव योग्य अध्यवसाय। यही द्रव्यास्रव का मूल है। वैसे द्रव्यास्रव भी भावास्रव का कारण है। जिन आत्माओं में द्रव्य-कर्म नहीं होते, उन्हें भावास्रव भी नहीं होता। भावास्रव में द्रव्यास्रव की नियमा है, किन्तु द्रव्यास्रव में भावास्रव की भजना है। अप्रमत्त एवं वीतराग के द्रव्यास्रव तो होता है, किन्तु भावास्रव नहीं होता। ___ संवर - जो भास्रव को रोके वह 'संवर' है। संवर के द्वारा कर्म-आगमन के द्वारों को बन्द किया जाता है।
पंचविहो पण्णत्तो जिणेहिं, इह अण्हओ अणाईओ। हिंसामोसमदत्तं, अब्बंभपरिग्गहं चेव॥२॥
शब्दार्थ - इह - इस प्रवचन में, जिणेहिं - जिनेश्वरों ने, पंचविहो - पांच प्रकार का, अण्हओआस्रव, पण्णत्तो - कहा है, अणाईओ - आस्रव अनादि से है। इसके पांच भेद इस प्रकार हैं, हिंसाःप्राणियों का घात, मोस - मृषावाद, अदत्तं - स्वामी के दिये बिना लेना-चोरी, अब्बंभ - अब्रह्मचर्य-मैथुन, चेव - और, परिग्गहं - परिग्रह।
भावार्थ - इस निर्ग्रन्थ-प्रवचन में जिनेश्वरों ने आस्रव के पांच भेद इस प्रकार कहे हैं - हिंसा, मृषावाद, अदत्त ग्रहण, अब्रह्मचर्य और परिग्रह। यह आस्रव अनादिकाल से है।
विवेचन - इस गाथा में आस्रव के पांच भेदों का नामोल्लेख कर के बताया गया है कि आस्रव के ये भेद अनादिकाल से हैं। इसी से संसार है। यदि आस्रव नहीं हो, तो संसार भी नहीं है। आस्रव के कारण ही संसार है। इसी से गति, स्थिति, जन्म, मरण और संयोग-वियोगादि है। जहाँ आस्रव का अन्त हुआ कि जीव अयोगी बना और अशरीरी होकर परम विशुद्ध परमात्मा हो जाता है। व्यक्ति विशेष के लिए आस्रव का अन्त हो सकता है, परन्तु समूचे संसार से आस्रव का अन्त कभी नहीं हो सकता।
जारिसओ जंणामा, जह य कओं जारिसं फलं देइ। जे वि य करेंति पावा, पाणवहं तं णिसामेह॥३॥ ..
शब्दार्थ - जारिसओ - प्राणी-वध-हिंसा का जैसा स्वरूप है, जंणामा - हिंसा के जो नाम हैं, थ - और, जह - जिस प्रकार, कओ.- हिंसा की जाती है, जारिसं - हिंसा जैसा, फलं - फल, देइदेती है, य - और, जे - जो, पावा - पापात्मा, करेंति - पाप करती है, तं - उस, पाणवहं - प्राणी-वध को, णिसामेह - सुनो।
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