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________________ १६४ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ० ४. **************************************************************** विवेचन - चक्रवर्ती सम्राट की ऋद्धि एवं उत्कृष्ट भोगों का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस सूत्र में बलदेव और वासुदेव की ऋद्धि पराक्रम एवं भोग-सामग्री का वर्णन करते हैं। श्लाघनीय उत्तम पुरुषों में सर्वोत्कृष्ट स्थान तीर्थंकर भगवंतों का होता है। उसके बाद दूसरा स्थान चक्रवर्ती सम्राट का है और इनके बाद वासुदेव और बलदेव आते हैं। चक्रवर्ती से वासुदेव की ऋद्धि राज्य-विस्तार एवं बल आधा होता है। बलदेव बड़े भाई होते हैं और वासुदेव छोटे भाई। इस सूत्र में इस अवसर्पिणी काल में हुए नौ बलदेव-वासुदेवों में से अन्तिम-नौवें बलदेव-वासुदेव का वर्णन है। . दशाह - लोकपूज्य। ये दस थे। इनके नाम - १. समुद्रविजय २. अक्षोभ्य ३. स्तिमित ४. सागर ५. हिमवान् ६. अचल ७. धरण ८. पूरण ९. अभिचन्द्र और १०. वसुदेव। . .. साणुक्कोसा अमच्छरी अचवला अचंडा मियमंजुलपलावा हसियगंभीरमहरभणिया अब्भुवगयवच्छला सरण्णा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माण-पमाण-पडिपुण्णसुजायसव्वंग-सुंदरंगा ससिसोमागारकंतपिय-दसणा अमरिसणा पयंडडंडप्पयारगंभीरदरिसणिज्जा तालद्धउव्विद्वगरुल-केऊ बलवग-गजंतदरियदप्पियमुट्ठिय-. दाणूरमूरगा रिटुवसहघाइणो केसरिमुहविष्फाडगा दरियणागदप्पमहणा जमलज्जुणभंजगा महासउणिपूयणारिवू कंसमउडमोडगा जरासंधमाणमहणा। शब्दार्थ - साणुक्कोसा - दया एवं अनुकम्पा युक्त हृदय वाले, अमच्छरी - ईर्ष्या भाव से रहित, अचवला - अचपल-चंचलता रहित-गम्भीर, अचंडा - अकारण क्रोधित नहीं होने वाले, मियमंजुलपलावा - परिमित एवं मधुर भाषण करने वाले, हसियगंभीरमहुरभणिया - कुछ हास्यपूर्वकमुस्कराते हुए गंभीरतायुक्त मधुर वचन बोलने वाले, अब्भुवगयवच्छला - समीप आए हुए के प्रति वात्सल्य भाव रखने वाले. सरण्णा- शरण में आये हए के रक्षक, लक्खणवंजणगुणोववेया - शुभ लक्षणों व्यंजनों और गुणों से युक्त, माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्यंगसुंदरंगा- उनके शरीर के समस्त अंगोपांग सुन्दर और मान-उन्मान तथा प्रमाण से परिपूर्ण थे, ससिसोमागारकंतपियदंसणा - उनकी आकृति चन्द्रमा के समान मनोहर थी, उनका दर्शन दर्शक को प्रिय लगता था, अमरिसणा - वे अमर्षण-अपराध एवं अत्याचार को सहन नहीं करने वाले थे अथवा कार्यसिद्धि में आलस्य नहीं करते थे, पयंडडंडप्पयारगंभीरदरिसणिज्जा - प्रचण्ड दण्ड प्रचार गम्भीर दर्शनीय-दुष्टों का दमन करने के लिए उनका अनुशासन बहुत प्रचण्ड होता था, वे दुष्टों के लिए अत्यन्त गम्भीर दिखाई देते थे, तालद्धव्विद्धगरुलकेउ - उनकी गरुड़ाङ्कित ध्वजा ताल वृक्ष के समान ऊंची थी, बलवगगजंतदरियदप्पयमुट्ठियचाणूरमूरगा - अति बलवान् और गर्व युक्त गर्जना करने वाले मुष्टिक मल्ल को-बलदेव ने और चाणूर मल्ल को-कृष्ण ने मार डाला था, रिट्ठवसहघाइणो - रिष्ट नाम के प्रचण्ड एवं दुष्ट साँड को-कृष्ण ने मार डाला था, केसरिमुहविप्फाडग - केसरी सिंह के मुँह को फाडने वाले, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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