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________________ चोर को दिया जाने वाला दण्ड १३३ *#MAHARRAMRAPARIHAR**************************************** खिलाये जाते हैं। वह पाप के भयंकर उदय वाला, पत्थर, लाठी आदि से पीटा जाता हुआ वधस्थान ले जाया जाता है। हजारों स्त्री पुरुषों से घिरा हुआ वह वध्य मनुष्य, नगर के मध्य में हो कर ले जाया जाता है। उसके शरीर पर प्राण-दण्ड के योग्य वस्त्र पहनाये हुए होते हैं। उसे देखने के लिए नागरिकजन चारों ओर से घेर लेते हैं। उस समय वह दीनतापूर्वक चारों ओर देखता है, किन्तु उस अभागे का कोई भी रक्षक नहीं बनता। उसे शरण देने वाला कोई नहीं होता। उस हतभागी का कोई पालक-स्वामी नहीं बनता। वैसे पापी, बन्धु-बान्धवों से हीन होते हैं। यदि ऐसे चोरों के बान्धवगण हों भी, तो वे उससे अपना नाता तोड़ लेते हैं। इस प्रकार मृत्युभय से उद्विग्न एवं भ्रांत बना हुआ वह हीनतम मनुष्य, वधस्थल पर ले जाकर शूली पर चढ़ा दिया जाता है। वह शूल उसके शरीर को भेदकर बाहर निकल जाती है। विवेचन- चोर के प्रकार"चौरः चौरार्पको मन्त्रीः, भेदज्ञः काणकक्रयी। अन्नदः स्थानदश्चैवः, चौरः सप्तविधः स्मृतः॥" - चोर के सात प्रकार हैं, यथा - १. चोरी करने वाला २. चोर को साधन देने वाला ३. चोर को परामर्श देने वाला ४. चोरी करने का भेद बताने वाला ५. चोरी का माल खरीदने वाला ६. चोर के खाने-पीने की व्यवस्था करने वाला और ७. चोर को स्थान देने वाला। चोरी अठारह प्रकार की होती है। यथा - "भलनं कुशलं तर्जा, राजभोगोवलोकनं। अमार्गदर्शनं शय्या, पदभंगस्तथैव च ॥१॥ विश्रामः पादपतन, मासनं गोपनं तथा। खण्डस्यखादनं चैव, तथाऽन्यन्माहराजिकम्॥२॥ पद्याग्न्युदकरजूनां; प्रदानं ज्ञानपूर्वकम्।. एताः प्रसूतयो ज्ञेयाः अष्टादश मनीषिभिः॥३॥" - १. भलन-चोर का उत्साह बढ़ाना, उसमें मिलना, साथ देना २. कुशल-कुशल पूछना ३.. तर्जा-अंगुली आदि से संकेत करना ४. राजभाग नहीं देना ५. अवलोकन-चोरी करते देखकर भी उपेक्षा करना ६. अमार्गदर्शन - खोज करने वालों को उल्टा मार्ग बताना ७. शय्या - चोर को सोने को स्थान व बिछौना देना ८. पदभंग - चोरों के चरणचिह्न मिटाना ९. विश्राम - विश्राम देना १०. पादपतन - चोर के चरणों में गिर कर सम्मान देना ११. आसन देना १२. गोपन-छुपाना १३. खण्डखादन-मिष्ठान देना १४. माहराजिक-दूसरे स्थान या पर-राष्ट्र में ले जाकर चोरी की वस्तु बेचना १५. पद्य - उष्ण जल, तेल आदि देना अथवा मार्ग देना १६. अग्नि-दान १७. जलदान और १८. रज्जु (रस्सी) दान। ये अठारह प्रकार की चोरियों कही गई हैं। चौर्यकर्म के ये कारण हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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