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________________ १२६ ***** प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०३ ******************************************************** तेहिं - उन्हें, कप्पडप्पहार - चाबुक के प्रहार से, णिद्दय - निर्दयतापूर्वक, आरक्खिय - आरक्षितरक्षाधिकारी, खरफरुसवयण - कटु एवं कठोर वचनों से, तज्जण - तर्ज़ना, गलच्छल्लुच्छल्लणाहिं - गला पकड़ कर दबा देते हैं, विमणा - विमनस्क-उदास, चारगवसहिं - बन्दीगृह में, पवेसिया - प्रवेश किये हुए, णिरयवसहिसरिसं - नरकावास के समान, तत्थवि - वहाँ पर भी, गोमियप्पहार - जेलर द्वारा प्रहार, दूमणणिब्भच्छण - परितापित तथा निर्भर्त्सना से, कडुयवयण - कटुक वचन, भेसणग- भयोत्पादक, भयाभिभूया - भय से डरे हुए, अक्खित्तणियंसणा - वे निर्वस्त्र हो जाते हैं, मलिणदंडिखंडणिवसणा - मलिनं तथा फटे हुए वस्त्र पहने हुए, उक्कोडालंचपास-मग्गणपरायणेहिंबन्दीगृहाधिकारी घूस में धन तथा चोरी का धन प्राप्त करने में परायण हैं, दुक्खसमुदीरणेहिं - बहुत ही दुःख देते हैं, गोम्मियभडेहिं - बन्दीगृह के अधिकारी सुभट से, विविहेहिं बंधणेहिं - विविध प्रकार के बन्धनों से। भावार्थ - चोरी करके दूसरे के धन को हरण करने वाले चोर को राज्याधिकारी पकड़ लेते हैं, तब वे उस चोर को अनेक प्रकार के कष्ट देते हैं। वे चोर लाठियों से पीटे जाते हैं, दृढ़तापूर्वक बांधे जाते हैं और कारागृह में बन्द कर दिये जाते हैं। उन्हें शीघ्रतापूर्वक चलाया जाता है, दौड़ाया जाता है, नगर में घुमाया जाता है और अधिकारियों द्वारा कारागृह में पहुंचा दिया जाता है। कारागृह के अधिकारी (जेलर) उस चोर को चाबुक से निर्दयतापूर्वक पीटते हैं और कठोरतम वचनों से निर्भर्त्सना करते हैं। उस चोर का गला दबा कर यन्त्रणा देते हैं, इससे वह चोर उदास तथा विमनस्क हो जाता है। कारागृह में उसे नरकावास के समान दुःख दिया जाता है। कारागृह के अधिकारी उसे पीटते हैं और अत्यन्त भयावने शब्दों से उसे भयभीत करते हैं। वे उसके कपड़े उतरवा लेते हैं और मैले तथा फटे हुए कपड़े पहनने को देते हैं। कारागार के कोई अधिकारी चोरों से घूस मांगते हैं, यदि उन्हें घूस (लांच) नहीं मिले, तो असह्य दुःख देते हैं और विविध प्रकार के बन्धनों में जकड़ कर त्रास देते हैं। किं ते? हडि-णिगड-वालरज्जुय-कुदंडग-वरत्त-लोहसंकल-हत्थंदुय-बझपट्टदामक-णिक्कोडणेहिं अण्णेहिं य एवमाइएहिं गोम्मिगभंडोवगरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडमोडणाहिं बझंति मंदपुण्णा संपुडकवाड-लोहपंजर-भूमिघर-णिरोहकूव-चारग-कीलग-जूय-चक्कविततबंधण-खंभालण-उद्धचलण-बंधणविहम्मणाहि य विहेडयंता अवकोडगगाढ-उर-सिरबद्ध-उद्धपूरिय . फुरंत-उरकडगमोडणामेडणाहिं बद्धा य णीससंता सीसावेढ-उरुयावल-चप्पडग-संधिबंधण-तत्तसलागसूइया-कोडणाणि तच्छणविमाणणाणि य खारकडुय तित्तणावणजायणा-कारण... "दुक्खसयसमुदीरणेहिं"-पाठ भी है। .यहाँ"असुभपरिणया य" - पाठ श्री ज्ञानविमल सूरि की वृत्ति वाली प्रति में है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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