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________________ मृषावाद का भयानक फल ... **************************************************************** . इस प्रकार मन, वचन और शरीर की अशुभ क्रिया से मिथ्या आचरण करने वाले अनार्य, अकुशल, मिथ्यामत के अनुयायी लोग, असत्य उपदेश करते हैं। वे असत्य-कथा कहते एवं मिथ्या प्रचार करते तथा उन्हीं में लीन रहते हुए सन्तुष्ट रहते हैं और बढ़-चढ़कर, असत्य उपदेश-आदेश करते रहते हैं। विवेचन - पूर्व सूत्र में वर्णित मिथ्या एवं हिंसक उपदेश-आदेश का वर्णन इस सूत्र में भी हुआ है। इसमें युद्ध को प्रेरणा तथा चूडाकर्म, विवाह आदि गृहस्थ सम्बन्धी संस्कार, अनिष्ट ग्रह, अशुभ स्वप्न और शकुन आदि के परिहार एवं शांति के लिए देवी-देवता को भोग-समर्थनादि में अज्ञानी लोगों के द्वारा बोले जाते हुए असत्य वचनों के प्रकार बतलाये गये हैं। मृषावाद का भयानक फल तस्स.य अलियस्स फलक्विगिं अयाणमाणा वड़ेंति, महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्खं संकडं णरयतिरियजोणिं, तेण य अलिएण समणुबद्धा आइद्धा पुणब्भवंधयारे भमंति भीमे दुग्गइवसहिमुवगया। ते य दीसंति इह दुग्गया दुरंता परवस्सा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिया फुडियच्छवि-बीभच्छ-विवण्णा, खरफरुसविरत्तज्झामग्झूसिसरा, णिच्छाया, लल्लविफलवाया, असक्कयमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीणभिण्णघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंतविकयकरणा, णीया णीयजणणिसेविणो लोयगरहणिजा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोय-वेय-अज्झप्पसमयसुइवजिया, णरा धम्मबुद्धिवियला। अलिएण य तेणं पडज्झमाणा असंतएण य अवमाणणपिट्ठिमंसाहिक्खेव-पिसुण-भेयण-गुरुबंध-वसयण-मित्तवक्खारणाइयाइं अब्भक्खाणाई बहुविहाई पावेंति अमणोरमाइं हिययमणदूमगाइं जावज्जीवं दुरुद्धराइं अणि?खरफरुसवयण-तज्जण-णिब्भच्छण. दीणवयण-विमणा कुभोयणा कुवाससा कुवसहीसु किलिस्संता व सुहं व णिव्वुइं उवलभंति अच्चंतविउलदुक्खसयसंपलित्ता*। शब्दार्थ - तस्स - उस, अलियस्स - मिथ्या भाषण का, फलविवागं - फल विपाक को, अयाणमाणा - नहीं जानते हुए, वड्डेति - बढ़ाते हैं, महब्भयं - महाभयकारी, अविस्सामवेयणं - * जडबहिरमूया-पाठ भी मिलता है। * संपउत्ता-पाठ भी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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