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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०२ ****************************************************************
भावार्थ - वे पाप-भावना वाले दुराशयी लोग, यंत्रों (छोटे जलयंत्रों-फव्वारों) या बड़े यंत्रोंदैत्याकार मिलों आदि स्थापित करने की सलाह देते हैं, उनमें सफलता प्राप्त करने का मार्ग बतलाते हैं अथवा मंत्र-तंत्रादि से किसी को विक्षिप्तादि से हानि पहुँचाने में योग देते हैं। विष-प्रयोग कर कुत्तों; चूहों या मनुष्यादि को मारने-नष्ट करने की प्रेरणा देते हैं। विधवा, कुमारिका अथवा संतान की अनिच्छुक स्त्री का गर्भ गिराने जैसा दुष्ट कर्म करने की विधि बतलाते हैं। जनसमूह में क्षोभ, वैर आदि' फैलाने में अपनी वाणी का प्रयोग कर पाप बढ़ाते हैं। वशीकरणादि मंत्र एवं औषधी का प्रयोग कर विपक्ष की हानि करने का गूढ़ परामर्श भी देते हैं। चोर को चोरी करने, व्याभिचारी को व्याभिचार में प्रेरित करने, सेना में विद्रोह भड़काने अथवा विपक्ष से मिलकर स्व-पक्ष को नष्ट करवाने का कुचक्र चलाते रहते हैं। कहीं किसी ग्राम के निवासियों पर रुष्ट होकर, गांव को जलाकर भस्म करने का षड्यंत्र करते हैं, तो कहीं गुप्त रूप से घातकों को भेजकर सोते हुए मनुष्यों को मरवाने की पाप-जाल गूंथते हैं। कोई वन को जलाकर साफ करने अथवा वन जलाकर सफाई करने की देवी से मन्नत लेने और जला डालने की शिक्षा देते हैं। कोई तालाब, नदी का बांध या अन्य जलाशय तोड़कर पानी बहाने की दुष्ट चाल चलने की उत्तेजना देते रहते हैं, जिससे शत्रु-पक्ष के धन-जन और पशुओं की हानि हो जाये। कोई मंत्र-तंत्र का प्रयोग कर विपक्षी की बुद्धि विकृत करने-नष्ट करने के लिए उकसाते हैं। कोई वशीकरणादि मंत्र साधने का उपदेश करते हैं, कोई मारण-उच्चाटनादि से भय, क्लेश, मारणादि दोष उत्पन्न करने वाले वचनों का व्यापार करते हैं। उनके भाव बहुत ही क्लिष्ट-कलुषित और अत्यन्त मलिन होते हैं। वे दुष्टाशयी लोग, जीवों की घात करने वाले वचनों का व्यवहार करते हैं। कभी उनके वचन सत्य भी हों और उस पाप से उन्हें तात्कालिक पौद्गलिक लाभ हो भी जाता हो, फिर भी उस लाभ की अपेक्षा उन खुद के आत्मा की हानि असंख्य गुनी हो जाती है और दूसरों को दुःख, शोक, परिताप एवं मरण होता है। इस प्रकार तात्कालिक सत्य (अनूकूल दिखाई देने वाला पाप, परिणाम में) तो महान् असत्य (दुःखदायक) ही होता है। अतएव वह यत्किंचित् लाभ भी परिणाम में हानि ही है।
हिंसक उपदेश-आदेश पुडा वा अपुट्ठा वा परतत्तियवावडा य असमिक्खियभासिणो उवदिसंति, सहसा उट्टा गोणा गवया दमंतु परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलग-कुक्कुडा य किज्जंतु किणावेह य विक्केह पहय य सयणस्स देह पियह दासी-दास-भयग-भाइल्लगा य सिस्सा य पेसगजणो कम्मकरा य किंकरा य ऐए सयणपरिजणो य कीस अच्छंति भारिया भे करित्तु कम्मं गहणाई वणाई खेत्तखिलभूमिवल्लराइं उत्तणघणसंकडाई डज्झतु-सूडिजंतु या रुक्खा, भिजंतु जंतभंडाइयस्स उवहिस्स कारणाए बहुविहस्स
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