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द्वितीय उद्देशक - अन्यों द्वारा गवेषित पात्र लेने का प्रायश्चित्त
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पात्र-निर्मापन आदि का प्रायश्चित्त जे भिक्खू लाउयपायं वा दारुयपायं वा मट्टियापायं वा सयमेव परिघट्टेइ वा संठवेइ वा जमावेइ वा परिघटेंतं वा संठवेंतं वा जमावंतं वा साइजइ॥२५॥ . भावार्थ - २५. जो भिक्षु तुम्बिका, काष्ठ या मृत्तिका के पात्र का स्वयं निर्मापन, संस्थापन करता है, विषम को सम करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - प्रथम उद्देशक में दूसरों से कराने का प्रायश्चित्त बताया है इस सूत्र में स्वयं परिकर्म करने का प्रायश्चित्त बताया है।
दण्ड आदि के निर्मापन आदि का प्रायश्चित्त - जे भिक्खू दंडगं वा लट्ठियं वा अवलेहणं वा वेणुसूइयं वा सयमेव परिघट्टेइ वा संठवेइ वा जमावेइ वा परिघट्टेतं वा संठवेंतं वा जमातं वा साइज्जइ॥ २६॥ - भावार्थ - २६. जो भिक्षु दण्ड, लाठी, अवहेलनिका - वर्षा ऋतु में पैरों में लगे कीचड़
को पौंछने के लिए शलाका विशेष या बांस की सूई का स्वयं निर्मापन, संस्थापन करता है, विषम को सम करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। . विवेचन - दूसरों से कराने की अपेक्षा स्वयं करने में अयतना विशेष नहीं होने से यहाँ पर कम प्रायश्चित्त बताया गया है।
अन्यों द्वारा गवेषित पात्र लेने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू णियगवेसियगं पडिग्गहगं धरेइ धरेंतं वा साइजइ॥ २७॥ जे भिक्खू परगवेसियगं पडिग्गहगं धरेइ धरतं वा साइजइ॥ २८॥ जे भिक्खू वरगवेसियगं पडिग्गहगं धरेइ धरेतं वा साइजइ॥२९॥ जे भिक्खू बलगवेसियगं पडिग्गहगं धरेइ धरेंतं वा साइजइ॥३०॥ जे भिक्खू लवगवेसियगं पडिग्गहगं धरेइ धरेतं वा साइजइ॥ ३१॥
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