________________
२३
बीओ उद्देसओ-द्वितीय उद्देशक
दण्डयुक्त पादपोंछन बनाने आदि का प्रायश्चित्त जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणयं करेइ करेंतं वा साइजइ॥१॥ जे भिक्ख दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हइ गेण्हतं वा साइज्जइ ॥२॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं धरेइ धरतं वा साइज्जइ॥३॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं वियरइ वियरंतं वा साइज्जइ॥४॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभाएइ परिभाएंतं वा साइज्जइ ॥५॥ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभुंजइ परिभुजंतं वा साइज्जइ॥६॥
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परं दिवड्डाओ मासाओ धरेइ धरेतं वा साइजड़॥७॥
जे भिक्ख दारुदंडयं पायपुंछणयं विसुयावेइ विसुयावेंतं वा साइज्जइ॥८॥
कठिन शब्दार्थ - दारुदंडयं - काठ का दण्ड या डण्डा, पायपुंछणयं - पादपोंछन - पैर को पोंछने हेतु वस्त्र-खण्ड, गेण्हइ - गृहीत करता है, धरेइ - धारण करता है, वियरइदेता है, परिभाएइ - परिभाजित या विभाजित - अन्य को उपयोग हेतु देता है, परिभुंजइ - परिभोग. - उपयोग करता है, विसुयावेइ - सुखाने हेतु धूप में रखता है। ... - भावार्थ - १. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन करता है - बनाता है या बनाते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
२. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन गृहीत करता है या गृहीत करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
३. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन धारण करता है या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन अन्य को वितरित करता है या वितरित करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५. जो भिक्षु काष्ठ दण्ड युक्त पादपोंछन परिभाजित करता है - अन्य को उपयोग हेतु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org