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निशीथ सूत्र
करवा दिया गया है उसे फिर उसमें मिला कर प्रायश्चित्त नहीं दिया जाता है। किन्तु बीच में दोष लगने पर उसका प्रायश्चित्त अलग दे दिया जाता है, जिसकी आरोपणा छह महीने पूरे होते ही उसके आगे १५ दिन २० दिन आदि रूप में प्रारंभ करवा दी जाती है। किन्तु उसमे मिला कर साढे छह महीने आदि रूप नहीं की जाती। यदि एक महीने, दोमहीने.. आदि के प्रायश्चित्त को वहन कर रहा हो और बीच में दोष लगा दे तब तो पाक्षिक आरोपण आदि रूप से बढ़ाते हुए यावत् छह महीने तक उसके साथ जोड कर भी देते हैं। अतः जो छहमासी प्रायश्चित्त वहन कर रहा है और दो महीने वहन करने के बाद उसने दो महीने के प्रायश्चित्त स्थान का सेवन किया तो उसका प्रायश्चित्त अलग दिया जायेगा, यदि उसने कपटरहित आलोचना की है तो २० दिन का प्रायश्चित्त दिया जाएगा और कपटसहित आलोचना की है तो दो महीने और २० दिन का प्रायश्चित्त दिया जायेगा। जिसे छह महीने के पूर्ण होते ही चालू करवा दिया जाता है, किन्तु छह महीने के और २० दिन या आठ महीने और २० दिन का इस प्रकार से नहीं दिया जाता हैं।
॥ इति निशीथ सूत्र का विंश (बीस) उद्देशक समाप्त ॥
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॥ इति निशीथ सूत्र समाप्त ॥
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