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निशीथ सूत्र
अद्धछट्ठमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं छम्मासा॥ ५३॥ ॥णिसीहऽज्झयणे वीसइमो उद्देसो समत्तो॥ २०॥
॥णिसीहसुत्तं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ - पंचूणा - पाँच न्यून- पाँच कम।
भावार्थ - ४७. दो मास प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारंभ, मध्य अथवा अन्त में प्रयोजन योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। . इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) ढाई मास की प्रस्थापना होती है।
४८. ढाई मास का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में प्रयोजन, हेतु या विशेष कारण पूर्वक द्विमासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है (जैसा पूर्व सूत्र में वर्णित हुआ है)।
इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) तीन मास पाँच रात्रि की प्रस्थापना होती है।
४९. तीन मास और पाँच रात्रि का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य या अन्त में प्रयोजन, हेतु अथवा विशेष कारणपूर्वक एक मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। (जैसा पूर्व सूत्र में वर्णित हुआ है), इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) तीन मास और बीस रात्रि की प्रस्थापना होती है।
५०. तीन मास एवं बीस रात्रि का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त
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