________________
४२८
निशीथ सूत्र
४१. त्रिमासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर ( इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। अन्तर इतना - सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर साढे तीन मास का प्रायश्चित्त आता है।
४२. साढे तीन मास का प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर (इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। अन्तर इतना - सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर चार मास का प्रायश्चित्त आता है।
४३. चार मास प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर ( इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरीपणा का प्रायश्चित्त आता है। अन्तर इतना-सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर साढे चार मास का प्रायश्चित्त आता है।
४४. साढे चार मास प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर (इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है । अन्तर इतना - सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर पाँच मास का प्रायश्चित्त आता है।
D
४५. पाँच मास प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर ( इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। अन्तर इतना-सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर साढे पाँच मास का प्रायश्चित्त आता है।
४६. साढे पाँच मास प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर (इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। अन्तर इतना - सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर छह मास का प्रायश्चित्त आता है।
1
Jain Education International
विवेचन - इन सूत्रों में प्रायश्चित्त विषयक प्रस्थापन आरोपण एवं वृद्धि का वर्णन हुआ है। समय की न्यूनाधिकता के अतिरिक्त वर्णन क्रम लगभग सूत्र सं० २७-३१ के सदृश है।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org