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निशीथ सूत्र
जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं जायइ जायंतं वा साइज्जइ ॥ २४ ॥ जे भिक्खू अविहीए णहच्छेयणयं जायइ जायंतं वा साइज्जइ ॥ २५ ॥ जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणयं जायइ जायंतं वा साइज्जइ ॥ २६ ॥ कठिन शब्दार्थ - अविहीए - अविधि - अविवेकपूर्वक ।
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भावार्थ - २३. जो साधु अविधि से अविवेकपूर्वक सूई की याचना करता या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
२४. जो साधु अविधि से कर्तरिका की याचना करता है या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
२५. जो साधु अविधि से नखछेदनक की याचना करता है या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
२६. जो साधु अविधि से कर्णशोधनक की याचना करता है या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन साधु निष्परिग्रही होता है। वह औपधिक उपकरण तो सदा अपने पास रखता है, किन्तु प्रत्यर्पणीय औपग्रहिक उपकरण गृहस्थों से याचित करके लेता है । लेने की अपनी विधि या पद्धति है । वह जाकर गृहस्थ से कहता है कि मुझे फटे हुए वस्त्र की सिलाई आदि आवश्यक अमुक कार्य हेतु सूई आदि अमुक वस्तु की आवश्यकता है, मुझे दें। मैं उसे उपयोग में लेने के उपरान्त तत्काल वापस लौटा दूंगा, ऐसा कह कर वह गृहस्थ द्वारा दिए गए उपकरण को भलीभाँति ग्रहण करे। बड़ी सावधानी से उसे अपने पास रखे, काम में लेने के पश्चात् ज्यों का त्यों वापस लौटा दे। यह विधि या विवेकपूर्वक याचना करने का क्रम हैं ।
गृहस्थ के हाथ से उठाना तथा गृहस्थ के द्वारा भूमि पर रखे बिना याचकवृत्ति नहीं रखते हुए याचना करना अविधि याचना कहलाती है ।
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साधु आवश्यकतानुरूप लिए जाने वाले औपग्रहिक उपकरणों को लेते समय इस विधि या पद्धति का अनुसरण करे। इससे दाता के मन में भी बड़ा संतोष रहता है । उसे देते हुए प्रसन्नता होती है। अपनी दी जाने वाली वस्तु के संबंध में वह निश्चिन्त रहता है।
प्रातिहारिक वस्तु के अनिर्दिष्ट उपयोग का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू पाडिहारियं सूइं जाइत्ता वत्थं सिव्विस्सामित्ति पायं सिव्वइ सिव्वंतं वा साइज्जइ ॥ २७ ॥
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