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शब्द-श्रवण-आसक्ति विषयकं प्रायश्चित्त
वा महिसजुद्धाणि वा सूयरजुद्धाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ
अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ २६५ ॥
भिक्खू गाहियद्वाणाणि वा हेयजूहियद्वाणाणि वा गयजूहिय- द्वाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ २६६ ॥
जे भिक्खू अभिसेयद्वाणाणि वा अक्खाइयट्टाणाणि वा माणुम्माणप्पमाणियद्वाणाणि वा महया हयणट्टगीयवाइयतंतीतल - तालतुडियपडुप्पवाइयट्ठाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ २६७ ॥
जे भिक्खू डिंबाणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ २६८ ॥
जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झिमाणि वा डहराणि वा अणलंकियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णच्वंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विउलं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परिभायंताणि वा परिभुंजंताणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारे अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ २६९॥
जे भिक्खू इहलोइएसु वा सद्देसु परलोइएसु वा सद्देसु दिट्ठेसु वा सद्देसु अदिट्ठेसु वा सद्देसु सुएसु वा सहेसु असुरसु वा सद्देसु विण्णाएसु वा सहेसुसज्जइ रज्जई गिज्झइ अज्झोववज्जइ सज्जतं रज्जंतं गिज्झतं अज्झोववज्र्जतं वा साइबइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ।। २७० ॥ ॥ णिसीहऽज्झयणे सत्तरसमो उद्देसो समत्तो ॥ १७ ॥
सप्तदश उद्देशक
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भावार्थ - २५७. जो भिक्षु खेत, खाई, नीलकमलयुक्त जलाशय, छोटे तालाब, जलप्रपात, निर्झर, बावड़ी, कमलयुक्त छोटे तालाब, चतुष्कोणयुक्त बावड़ी, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, प्रणालिका संबद्ध सरोवरों की पंक्तियों के विषय में (प्रशंसा - निंदा मूलक ) शब्द श्रवण की इच्छा से मन:संकल्प करता है या ऐसा निश्चय करते हुए का अनुमोदन करता है।
२५८. जो भिक्षु जल बहुल प्रदेश, सघन वृक्ष युक्त वन, गुप्तवन प्रदेश, वन, विविधवृक्षमय
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