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सप्तदश उद्देशक - साधु-साध्वी द्वारा परस्पर पाद - आमर्जन विषय.....
भिक्षु वेश को लजाता है। यदि उसने भिक्षु जीवन स्वीकार किया है तो उसे सत्य, स्थिरता, दृढ़ता एवं अविचलता के साथ उसका पालन करना चाहिए। इनका लंघन कर विविध वेशपरिवेश - संरचना में संलग्न भिक्षु प्रायश्चित्त का भागी होता है।
साधु-साध्वी द्वारा परस्पर पाद- आमर्जन विषय प्रायश्चित्त
जे णिग्गंथे णिग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज़ावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ जाव जे णिग्गंथे णिग्गंथस्स गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सीसवारियं कारावेइ, कारावेतं वा साइज्जइ ॥ १५-७० ॥
जे णिग्गंथे णिग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारात्थिएण वा आमज्जावेज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ जाव जे णिग्गंथे णिग्गंथीए गमाणुगामं दूइज्जमाणीए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सीसदुवारियं कारावेइ, कारावेंतं वा साइज्जइ ॥ ७१-१२६ ॥
जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स पाएं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जवेज्जा वा पमज्जावेज वा आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ जाव जा णिग्ग्रंथी णिग्ग्रंथस्स गामाणुगामं दूइजमाणस्स अण्णउत्थिएण वा.. गारत्थए वा सीस दुवारियं कारावेड़ कारावेंतं वा साइज्जइ ॥ १२७-१८२ ॥
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जा णिग्गंथी णिग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज पमज्जावेज्ज वा आमज्जावेंतं वा पमज्जावें वा साइज्जइ जाव जाणिग्गंथी णिग्गंथीए गामाणुगामं दुइज्जमाणीए अणउत्थिएण वा गारत्थि एण वा सीसदुवारिय कारावेइ कारवेतं वा साइज्जइ ॥ १८३-२३८ ॥
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भावार्थ
१५ - ७०. जो निर्ग्रन्थ (साधु) निर्ग्रन्थिनी (साध्वी) के पैरों का अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से आमर्जन- प्रमार्जन करवाती है या आमर्जन- प्रमार्जन करवाने वाली का अनुमोदन करता ही। इसी प्रकार यहाँ सम्पूर्ण वर्णन पूर्ववत् ज्ञातव्य है यावत् निर्ग्रन्थ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए निर्ग्रन्थ के मस्तक को अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से ढकवाता है या ऐसा करने वाली का अनुमोदन करता है ।
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