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षोडश उद्देशक - विराधना-आशंकित स्थान पर परिष्ठापन विषयक प्रायश्चित्त ३६३ .
जे भिक्खू थूणंसि वा गिहेलुयंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतर्लिक्खजायंसि, दुब्बद्धे, दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे, चलाचले उच्चार-पासवणं परिढुवेइ परिवेंतं वा साइजइ॥५०॥
जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलसि वा लेलुंसी वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि, दुब्बद्धे, दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिढुवेइ परिढुवेंतं वा साइज्जइ॥५१॥
जे भिक्खू खंधंसि वा फलहंसि वा मंचंसि वा मंडवंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि, दुब्बद्धे, दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे, चलाचले उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ परिवेंतं वा साइजइ। - तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं॥५२॥ ... ॥ णिसीहऽज्झयणे सोलसमो उद्देसो समत्तो॥१६॥
भावार्थ - ४२. जो भिक्षु सचित्त पृथ्वी के निकटवर्ती अचित्त स्थान पर उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठते हुए का अनुमोदन करता है। ..... ४३. जो भिक्षु सचित्त जलयुक्त पृथ्वी के भाग में उच्चार-प्रस्रवण परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है।
४४. जो भिक्षु सचित्त रजयुक्त पृथ्वी के भाग में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठते हुए का अनुमोदन करता है।
४५. जो भिक्षु सचित्त मिट्टी के लेपयुक्त पृथ्वी के स्थान में उच्चार-प्रस्रवण परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है।
४६. जो भिक्षु सचित्त (सूक्ष्म त्रस जीवयुक्त) पृथ्वी के स्थान में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठते हुए का अनुमोदन करता है।
४७. जो भिक्षु सचित्त (सूक्ष्म त्रस जीवयुक्त) शिला पर उच्चार-प्रस्रवण परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है।
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