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निशीथ सूत्र
लम्बे रास्तों में अनेक संकट उत्पन्न हो सकते हैं। शुद्ध, एषणीय आहार-पानी आदि दुर्लभ हो सकते हैं। विद्वेषीजनों की ओर से विषम स्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं। अनार्य और अज्ञानीजन संयम का उपहास कर सकते हैं। क्रूरता से उपसर्ग उत्पन्न कर सकते हैं। उपसर्ग मारणांतिक भी हो सकते हैं। ___निष्कर्ष यह है कि भिक्षु ने जिस लक्ष्य से संयम का मार्ग अपनाया, वह लक्ष्य ऐसे स्थानों में जाने से व्याहत होता है। भिक्षु की यह मूल पूँजी है, जिसकी सर्वथा, सर्वदा परिरक्षा की जानी चाहिए।
यहाँ इतना अवश्य ज्ञातव्य है - जहाँ भिक्षु अवस्थित हो वहाँ दुर्भिक्ष, प्राकृतिक आपदा, राजपरिवर्तन, तदाशंकित विप्लव इत्यादि स्थितियाँ आशंकित हों, तब लम्बे अटवी सदृश मार्ग को पार कर, संयम सुरक्षा वाले स्थानों की ओर प्रयाण करना प्रायश्चित्त योग्य नहीं होता। . आचारांग सूत्र में इस संदर्भ में वर्णन प्राप्त होता है।
जुगुप्सित कुलों से आहारादि व्यवहार का प्रायश्चित्त जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ॥ २८॥ ____ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं
वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥ २९॥ . जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वसहि पडिग्गाहेइ पडिग्गाहें तं वा साइजइ॥ ३०॥
जे भिक्खू दुगुछियकुलेसु सज्झायं करेइ करेंतं वा साइज्जइ॥३१॥ . जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं उहिसइ उहिसंतं वा साइजइ॥ ३२॥ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं वाएइ वाएंतं वा साइजइ॥ ३३॥ जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥३४॥ कठिन शब्दार्थ - दुगुंछियकुलेसु - जुगुप्सित - निन्दित कुलों में।
*आचारांगसूत्र, द्वितीय श्रुतस्कंध, अध्ययन-३, उद्देशक-१
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