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चतुर्दश उद्देश पात्र परिकर्म (सज्जा) विषयक प्रायश्चित्त
जे भिक्खू दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्टु सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ ॥ २८ ॥
जे भिक्खू दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्टु बहुदेवसिएण तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खतं वा भिलिंगतं वा साइज्जइ ॥ २९ ॥
जे भिक्खू दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्टु बहुदेवसिएण लोद्वेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वतं वा साइज्जइ ॥ ३० ॥
जे भिक्खू दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धेत्तिकट्टु बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा 'उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ ॥ ३१॥
कठिन शब्दार्थ - णवए नया, मे मुझे, लद्ध (इति) ऐसा, कड्ड - करके ( सोच कर ), बहु(दि ) देवसिएण हुए, सुब्भिगंधे - सुगंध युक्त, दुब्भिगंधे - दुर्गन्ध युक्त ।
भावार्थ - १२. जो भिक्षु, 'मुझे नया पात्र नहीं मिला है', यह सोच कर उस पर तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन एक बार या बार-बार मले अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे ।
१३. जो भिक्षु, 'मुझे नया पात्र नहीं मिला है', यह सोच कर उस पर लोध्र, कल्क, चन्दन आदि का चूर्ण या अबीर आदि का बुरादा एक बार या अनेक बार मले अथवा वैसा करने वाले का अनुमोदन करे ।
१४. जो भिक्षु, 'मुझे नया पात्र नहीं मिला है, यह सोचकर उसे अचित्त शीतल या उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोए अथवा वैसा करने वाले का अनुमोदन करे ।
१५. जो भिक्षु, 'मुझे नया पात्र नहीं मिला है', यह सोच कर उस पर रातबासी रखे हुए तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन को एक बार या अनेक बार लगाए - मले अथवा वैसा करने वाले का अनुमोदन करे ।
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लब्ध
प्राप्त हुआ है, ि बहुदैवसिक - रातबासी रखे
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