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१९४.
निशीथ सूत्र
राज्याभिषेकोत्सव के अवसर पर गमनागमन का प्रायश्चित्त . जे भिक्खु रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं महाभिसेयंसि वट्टमाणंसि णिक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतं वा साइज्जइ॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - महाभिसेयंसि - महाभिषेक - राज्याभिषेक, वट्टमाणंसि - होने के अवसर पर।
भावार्थ - १९. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त - परंपरागत राज्य के उत्तराधिकारी राजा के राजतिलक के महोत्सव के अवसर पर वहाँ प्रवेशनिष्क्रमण - गमनागमन करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - जब नए राजा का राजतिलक होता है, तब बहुत बड़ा उत्सव आयोजित होता है। बड़ी तैयारियाँ होती हैं, अनेक आरम्भ-समारम्भमूलक कार्य चलते रहते हैं। रास्ते (मार्ग) लोगों की भीड़ से भरे रहते हैं। नाच-गान, गाजे-बाजे आदि चलते रहते हैं, बड़ा ही कोलाहलपूर्ण वातावरण होता है। उसमें भिक्षु का जाना उसकी निर्मल, सात्त्विक, तटस्थ, आत्मस्थ दिनचर्या के विपरीत है। मंगल-अमंगल मान्यता विषयक आशंकाएँ भी बनी रहती हैं। अतः भिक्षु को वैसे समय में अपने स्थान में ही रहते हुए स्वाध्याय आदि में रत रहना
चाहिए।
राजधानियों में गमनागमन विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इमाओ दस अभिसयाओ रायहाणीओ उहिट्ठाओ गणियाओ वंजियाओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा णिक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतं वा साइजइ, तंजहा- चंपा महुरा वाणारसी सावत्थी साएयं कंपिल्लं कोसंबी मिहिला हथिणापुरं रायगिहं॥ २०॥
कठिन शब्दार्थ - अभिसेयाओ - आभिषेक्य - राजा के अभिषेक के योग्य, रामो - राजधानियाँ, उहिट्ठाओ - उद्दिष्ट - कथित - प्रतिपादित, गणियाओ -
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