________________
१४०
निशीथ सूत्र
कठिन शब्दार्थ - माउग्गामं - मातृग्रामं - स्त्री जाति या हर कोई स्त्री, मेहुणवडियाए- .. मैथुन सेवन हेतु, विण्णवेइ - विनिवेदित करता है - अनुरोध करता है।
भावार्थ - १. जो भिक्षु मैथुन सेवन के विचार से किसी स्त्री से वैसा अनुरोध करता है या अनुरोध करते हुए का अनुमोदन करता है।
२. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से हस्तकर्म करता है या हस्तकर्म करते हुए का अनुमोदन करता है। ___३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से अंगादान को काष्ठ, बांस आदि की सलाई, अंगुली तथा लोह आदि की शलाका से संचालित करता है या संचालित करते हुए का अनुमोदन करता है।
४. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से अंगादान का संवाहन या परिमर्दन करे अथवा संवाहन या परिमर्दन करते हुए का अनुमोदन करे।
५. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से अंगादान का तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन द्वारा अभ्यंगन, म्रक्षण या सम्मर्दन करे अथवा अभ्यंगन, प्रक्षण या सम्मर्दन करते हुए का अनुमोदन करे।
६. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से अंगादान का कल्क, लोध्र, पद्मचूर्ण, स्नपन या स्नान - विशेष स्नपन करे, जो चंदन आदि के चूरे से, अबीर आदि के बुरादे से उद्वर्तित - उबटन करे या परिवर्तित - बार-बार वैसा करे अथवा उद्वर्तित या परिवर्तित करते हुए का अनुमोदन करे। ___७. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से अंगादान को अचित्त शीतल या उष्ण जल से उत्क्षालित करे या प्रक्षालित करे अथवा उत्क्षालित या प्रक्षालित करते हुए का अनुमोदन करे।
८. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से अंगादान के अग्रभाग की त्वचा को ऊपर की ओर करता है - उलटता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
९. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से अंगादान को सूंघता है या सूंघते हुए का अनुमोदन करता है।
१०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के विचार से किसी अचित्त छिद्र में अंगादान को अनुप्रविष्ट कर शुक्र पुद्गलों को निष्कासित करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org