SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध . सुभद्रा की मृत्यु तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही मुहत्तंतरेण आसत्था समाणी बहूहि मित्त जाव परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलवमाणी विजयमित्तसत्थवाहस्स लोइयाई मयकिच्चाई करेइ। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च लच्छिविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचिंतेमाणी-अणुचिंतेमाणी कालधम्मणा संजुत्ता ॥५५॥ कठिन शब्दार्थ - आसत्था - आश्वस्त, लवणसमुद्दोत्तरणं - लवण समुद्र में गमन, लच्छिविणासं - लक्ष्मी विनाश, पोयविणासं - जहाज विनाश, पइमरणं - पति मृत्यु, अणुचिंतेमाणी - सोचती हुई। भावार्थ - तदनन्तर वह सुभद्रा सार्थवाही एक मुहूर्त के अनन्तर आश्वस्त हुई-सावधान हुई। अनेक मित्र, ज्ञाति आदि यावत् संबंधियों से घिरी हुई रुदन करती हुई, क्रंदन करती हुई विलाप करती हुई विजयमित्र सार्थवाह के लौकिक मृतक क्रिया कर्म को करती है। तत्पश्चात् वह सुभद्रा सार्थवाही किसी अन्य समय लवण समुद्र पर पति का गमन, लक्ष्मी का विनाश, जहाज का जलमग्न होना तथा पतिदेव के मृत्यु की चिंता में निमग्न हुई कालधर्म को प्राप्त हो गई। उज्झितक का व्यसनी बनना तए णं ते णगरगुत्तिया सुभदं सत्थवाहिं कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं सयाओ गिहाओ णिच्छुभंति, णिच्छुभित्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति। तए णं से उज्झियए दारए सयाओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे वाणियगामे णयरे सिंघाडग जाव पहेसु जूयखलएसु वेसियाघरेसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवहइ। तए णं से उज्झियए दारए अणोहट्टिए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मजप्पसंगी चोरजूयवेसदारप्पसंगी जाए यावि होत्था। तए णं से उज्झियए अण्णया कयाइ कामज्झयाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धिं विउलाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ॥५६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy