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________________ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ........................................................ तत्पश्चात् उस बालक के माता पिता ने महान् ऋद्धि सत्कार के साथ कुल मर्यादा के अनुसार पुत्र जन्मोचित बधाई बांटने आदि की पुत्र जन्म क्रिया और तीसरे दिन चन्द्र सूर्य दर्शन संबंधी उत्सव विशेष, छठे दिन कुल मर्यादानुसार जागरिका-जागरण महोत्सव किया। ग्यारहवें दिन के व्यतीत होने पर बारहवें दिन उसके माता पिता ने उसका गुण से संबंधित, गुण निष्पन्न नामकरण किया। जन्मते ही यह बालक एकान्त कूडा फेंकने के स्थान पर त्यागा गया था अतः इस बालक का नाम 'उज्झितक' रखा जाता है। तदनन्तर वह उज्झितक कुमार पांच धायमाताओं (क्षीरधात्री, मंजनधात्री, मंडनधात्री, क्रीडावनधात्री और अंकधात्री) से युक्त दृढप्रतिज्ञ की तरह यावत् निर्वात एवं निर्व्याघात पर्वतीय कंदरा में विद्यमान चम्पक वृक्ष की तरह सुखपूर्वक वृद्धि को प्राप्त होने लगा। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में उज्झितकुमार का जन्म एवं बाल्यकाल वर्णित है। उज्झितक कुमार का बाल्यकाल का वर्णन दृढ प्रतिज्ञ कुमार की तरह समझ लेना चाहिये। दृढप्रतिज्ञ का वर्णन औपपातिक सूत्र अथवा राजप्रश्नीय सूत्र से जान लेना चाहिये। पुत्र जन्म के तीसरे दिन चन्द्र सूर्य दर्शन, छठे दिन जागरण आदि समस्त बातें उस समय की कुल मर्यादा के रूप में ही समझनी चाहिये। आध्यात्मिक जीवन से इन बातों का कोई संबंध प्रतीत नहीं होता है। सुभद्रा को पति वियोग तए णं से विजयमित्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ गणिमं च १ धरिमं च २ मेज्जं च ३ पारिच्छेज्जं च ४ चउब्विहं भंडगं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेण उवागए। तए णं से विजयमित्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए णिब्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं तं विजयमित्तं सत्थवाहं जे जहा बहवे ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सत्थवाहा लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए छूढं णिब्बुड्डुभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेति ते तहा हत्थणिक्खेवं व बाहिरभंडसारं च गहाय एगंतं अवक्कमंति। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही विजयमित्तं सत्थवाहं लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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