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________________ द्वितीय अध्ययन - Jain Education International - वध्य पुरुष का वर्णन भावार्थ उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार जो कि तेजोलेश्या को संक्षिप्त करके अपने अंदर धारण किये हुए हैं तथा बेले बेले पारणा करने वाले हैं तथा भगवती सूत्र में वर्णित जीवन चर्या वाले हैं, भिक्षा के लिये वाणिज्यग्राम नगर में गए वहां ऊंच नीच सभी घरों में भिक्षा के निमित्त भ्रमण करते हुए राजमार्ग पर पधारे। ४५ वहां राजमार्ग में भगवान् गौतमस्वामी ने अनेक हाथियों को देखा जो कि युद्ध के लिये उद्यत थे, जिन्हें कवच पहनाये हुए थे और जो शरीर रक्षक उपकरण-झूल आदि युक्त थे तथा जिनके उदर-पेट दृढ़ बंधन से बांधे हुए थे। जिनके झूले के दोनों ओर बड़े बड़े घण्टे लटक रहे थे एवं जो मणियों और रत्नों से जड़े हुए ग्रैवेयक - कण्ठाभूषण पहने हुए थे तथा जो उत्तर कंचुक नामक तनुत्राण विशेष एवं अन्य कवचादि सामग्री धारण किये हुए थे। जो ध्वजा पताका तथा पंचविध शिरोभूषणों (शिर के पांच आभूषण- तीन ध्वजाएं और उनके बीच में दो पताकाएं) से विभूषित थे। जिन पर आयुध और प्रहरण आदि लिये हुए हाथीवान- महावत सवार हो रहे थे अथवा जिन पर आयुध और प्रहरण लदे हुए थे। और भी वहां पर अनेक अश्वों को देखा जो कि युद्ध के लिये उद्यत तथा जिन्हें कवच पहनाये हुए थे और जिन्हें शारीरिक रक्षा उपकरण धारण कराये हुए थे। जिनके शरीर पर झूलें पड़ी हुई थी, जिनके मुख में लगाम दिये गये थे जो क्रोध से होठों को चबा रहे थे तथा चामर एवं स्थासक (आभरण विशेष ) से जिनका कटिभाग विभूषित हो रहा था और जिन पर बैठे हुए घुड़सवार आयुध और प्रहरणादि से युक्त थे। इसी भांति वहां पर बहुत से पुरुषों को देखा, जिन्होंने दृढ़ बंधनों से बंधे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच शरीर पर धारण किये हुए थे। उनकी भुजा में शरासन पट्टिका (धनुष 'खैचते समय हाथ की रक्षा के निमित्त बांधी जाने वाली चमड़े की पट्टी) बंधी हुई थी । गले में आभूषण धारण किये हुए थे। उनके शरीर पर उत्तम चिह्नपट्टिका वस्त्र खण्ड निर्मित चिह्न - निशानी विशेष लगी हुई थी तथा आयुध और प्रहरण आदि को धारण किये हुए थे। उन पुरुषों के मध्य में भगवान् गौतम ने एक और पुरुष को देखा जिसके गले और हाथों को मोड़ कर पीछे रस्सी से बांधा हुआ था। उसके नाक और कान कटे हुए थे। शरीर को घृत से स्निग्ध किया हुआ था तथा वह वध्य - पुरुषोचित वस्त्र युग्म से युक्त था अथवा जिसके दोनों हाथों में हथकड़ियां पड़ी हुई थीं, उसके गले में कण्ठसूत्र के समान रक्त पुष्पों की माला थी और उसका शरीर गेरू के चूर्ण से पोता गया था, जो भय से संत्रस्त तथा प्राण धारण किये For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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