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________________ द्वितीय अध्ययन - प्रस्तावना ४१ ........................................................... विवेचन - प्रथम अध्ययन की समाप्ति पर जम्बूस्वामी ने सुधर्मा स्वामी से विनयपूर्वक निवेदन किया कि हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाक सूत्र के प्रथम मृगापुत्र नामक अध्ययन का जो भाव फरमाया है उसका मैंने आपके श्रीमुख से श्रवण किया है परंतु हे भगवन्! दूसरे अध्ययन में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है सो कृपा कर फरमाइये। जम्बू स्वामी के इस प्रकार निवेदन करने पर सुधर्मा स्वामी ने दूसरे अध्ययन का वर्णन किया है। ___तत्थ णं वाणियगामे कामज्झया णामं गणिया होत्था अहीण जाव सुरूवा बावत्तरीकलापंडिया चउसट्टिगणियागुणोववेया एगूणतीसविसेसे रममाणी एक्कवीसरइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला णवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा गीयरइयगंधव्व-णदृकुसला संगयगय० सुंदरथण० ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्तचामरवालवीयणीया कण्णीरहप्पयाया यावि होत्था, बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं जाव विहरइ॥३६॥ कठिन शब्दार्थ - बावत्तरीकलापंडिया - बहत्तर कलाओं में प्रवीण, चउसट्ठिगणियागुणोववेया - चौसठ गणिका गुणों से युक्त, एगूणतीसविसेसे - २६ विशेषों में, रममाणी - रमण करने वाली, एक्कवीसरइगुणप्पहाणा - इक्कीस प्रकार के रति गुणों में प्रधान, , बत्तीसपुरिसोवयारकुसला - कामशास्त्र प्रसिद्ध पुरुष के ३२ उपचारों में कुशल, णवंगसुत्तपडिबोहिया - सुप्त नव अंगों से जागृत अर्थात् दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, एक मुंह, एक त्वचा और एक मन, ये नौ अंग जिसके जागे हुए हैं, अट्ठारसदेसीभासाविसारया - अठारह देशों की भाषा में प्रवीण, सिंगारागारचारुवेसा - श्रृंगार प्रधान सुंदर वेश युक्त, गीयरइयगंधव्वणदृकुसला - गीत (संगीत विद्या) रति (कामक्रीड़ा) गान्धर्व (नृत्य युक्त गीत) और नाट्य में कुशल, संगय गय० - मनोहर गत गमन आदि से युक्त, सुंदरथण० - कुचादि गत सौन्दर्य से युक्त, ऊसियज्झया - जिसके विलास भवन पर ध्वजा फहराती थी, सहस्सलंभा - सहस्र का लाभ लेने वाली, विदिण्णछत्तचामर वाल वीयणीया - जिसे राजा की कृपा से छत्र तथा चमर एवं बाल व्यजनिका प्राप्त थी, कण्णीरहप्पयाया - कीरथ नामक रथ विशेष से गमन करने वाली, कामज्झया णामं - काम ध्वजा नामक, गणिया - गणिका, बहूणं गणिया सहस्साणं-हजारों गणिकाओं का, आहेवच्चं - आधिपत्य-स्वामित्व करती हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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