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दसवां अध्ययन
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दूसरे अध्ययन में भद्रनन्दी का और तीसरे अध्ययन में सुजातकुमार का तथा दसवें अध्ययन में वरदत्तकुमार का वर्णन है। इन तीनों अध्ययनों में सुबाहुकुमार की भलावण दी गई है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये भी सुबाहुकुमार की तरह पन्द्रहवें भव में मोक्ष जायेंगे। ____ बाकी बचे हुए छह अध्ययनों में अर्थात् चौथे से लेकर नवमे तक छह अध्ययनों के जीव उसी भव में मोक्ष चले गये। शास्त्रकार ने इन छह अध्ययनों 'जाव सिद्धे' से ये शब्द दिये हैं-'सिद्धे, बुद्धे, मुक्के, परिणिव्वाए, सव्वदुक्खाणमंतं कडे' जिनकी संस्कृत छाया है -
"सिद्धः, बुद्धः, मुक्तः, परिणिर्वाणः, सर्वदुःखानाम् अंतं कृतः"
अर्थात् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, शीतलीभूत हुआ और सब दुःखों का अंत किया। ये क्रियाएं भूतकाल की है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि इन छह अध्ययनों वाले जीव उसी भव में मोक्ष चले गये।
दुःखविपाक और सुखविपाक के दस-दस अध्ययन हैं। इस प्रकार कुल बीस अध्ययनों में विपाकश्रुत नामक ग्यारहवें अंग का संकलन हुआ है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में वर्णित दस अध्ययनों का अंतिम परिणाम दुःख और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में वर्णित दस अध्ययनों का अंतिम परिणाम सुख है। इस दुःख और सुख की वर्णित व्यक्तियों के जीव में समानता होने से इनको 'एक्कसरगा' एक समान कहा गया है। अथवा वर्णित व्यक्तियों के आचार में अधिक समानता होने की दृष्टि से भी ये एक समान-एक जैसे कहे जा सकते हैं। अथवा. दस दिनों में इन दस अध्ययनों का वर्णन होने से भी इनकी समानता स्पष्ट हो जाती है अथवा दुःखविपाक तथा सुखविपाक के अध्ययनों में वर्णित मृगापुत्र आदि तथा सुबाहुकुमार आदि सभी महापुरुष अंत में मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस दृष्टि से भी ये अध्ययन समान कहे गये हैं।
॥ इति सुखविपाक सूत्र समाप्त॥
॥ विपाक सूत्र समाप्त।
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