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________________ जिणदासे णामं पंचम अज्झयणं जिनदास नामक पांचवां अध्ययन पंचमस्स उक्खेवो-सोगंधिया णयरी, णीलासोए उज्जाणे, सुकालो जक्खो, अप्पडिहओ राया, सुकण्णा देवी, महचंदे कुमारे, तस्स अरहदत्ता भारिया, जिणदासो पुत्तो, तित्थयरागमणं, जिणदास पुव्वभवो मज्झमिया णयरी, मेहरहो राया, सुधम्मे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे॥२३६ ॥ ... कठिन शब्दार्थ - पंचमस्स उक्खेवो - पांचवें अध्ययन का अर्थ, जिणदासपुव्वभवोजिनदास के पूर्व भव के विषय में पूछा, सिद्धे - सिद्ध हुए। भावार्थ - अब पांचवें अध्ययन का अर्थ कहा जाता है - सौगंधिका नामक एक नगरी थी। उसके बाहर नीलाशोक उद्यान था। उसमें सुकाल यक्ष का यक्षायतन था। अप्रतिहत राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम सुकन्या था। उनके महचन्द्र नामक कुमार था। उसकी स्त्री का नाम अरहदत्ता और पुत्र का नाम जिनदास था। एक समय वहाँ तीर्थंकर भगवान् पधारे। गणधर महाराज ने उनके पूर्व भव के विषय में पूछा। भगवान् ने फरमाया कि - यह पूर्व भव में मध्यमिका नगरी में मेघरथ नाम का राजा था। सुधर्म अनगार को भावपूर्वक आहारादि बहरा कर प्रतिलाभिंत किया। यावत् सिद्धि गति को प्राप्त किया। . विवेचन - सुपात्र दान के प्रभाव से जिनदास कुमार उसी भव में कर्मों को क्षय कर मोक्ष चले गये। ॥ इति पंचम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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