________________
सुजाए णामं तइयं अज्झयणं
सुजात नामक तीसरा अध्ययन
तच्चस्स णं उक्खेवों - वीरपुरं णयरं, मणोरमं उज्जाणं, वीरकण्हमित्ते राया, सिरीदेवी, सुजाए कुमारे, बलसिरीपामोक्खा पंचसयकण्णा, सामी समोसरणं, पुव्वभव पुच्छा - उसुयारे णयरे उसभदत्ते गाहावई, पुप्फदत्ते अणगारे पडिलाभिए, इह उप्पण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ० ॥ २३७ ॥
कठिन शब्दार्थ
वीरकण्हमित्ते राया - वीरकृष्णमित्र नाम का राजा, इह उप्पण्णे
यहाँ उत्पन्न हुआ है।
भावार्थ - अब तीसरे अध्ययन का अर्थ कहा जाता है - वीरपुर नाम का एक नगर था । नगर के बाहर मनोरम नाम का उद्यान था । वीरकृष्णमित्र राजा राज्य करता था । उसके श्रीदेवी रानी थी। उनका सुजात नाम का कुमार था । बलश्री आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह किया गया। एक समय भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। गौतम स्वामी ने सुजातकुमार के पूर्वभव के विषय में पूछा। भगवान् ने फरमाया कि इषुकार नगर में ऋषभदत्त नाम का गाथापति था। उसने पुष्पदत्त अनगार को भाव पूर्वक आहार बहरा कर प्रतिलाभित किया। अब यहाँ उत्पन्न हुआ है आगे सारा वर्णन सुबाहुकुमार के समान है यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा।
विवेचन तीसरे अध्ययन का वर्णन भी प्रथम अध्ययन के समान ही है। केवल नाम और स्थान आदि का भेद है। तीसरे अध्ययन का नायक सुजातकुमार भी सुबाहुकुमार के समान पुष्पदत्तं अनगार को सुपात्रदान देकर दीक्षित होते हैं और संयम का यथाविधि पालन करते हुए सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होते हैं अंत में महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सर्व कर्मबंधनों का क्षय कर मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे।
॥ इति तृतीय अध्ययन समाप्त ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org