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________________ भद्दणंदी णामं बीयं अज्झयणं भद्रनन्दी नामक दूसरा अध्ययन सुखविपाक सूत्र के दूसरे अध्ययन में भद्रनन्दी के कथानक द्वारा सुपात्र दान की महिमा बता कर सूत्रकार ने सुपात्रदान द्वारा आत्म-कल्याण करने की प्रेरणा प्रदान की है। मूल पाठ इस प्रकार है - बिइयस्स णं उक्खेवो - एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे यरे थूभकरंड उज्जाणे, धण्णो जक्खो, धणावहो राया, सरस्सइ देवी, सुमिणदंसणं, कहणं, जम्मणं, बालत्तणं, कलाओ य जुव्वणे पाणिग्गहणं, दाओ, पासाय भोगा य जहा सुबाहुकुमारस्स । णवरं भद्दणंदीकुमारे, सिरिदेवी पामोक्खाणं पंचसया, सामी समोसरणं, सावगधम्मं, पुव्वभवपुच्छा-महाविदेहे वासे पुंडरीकिणी णयरी, विजए कुमारे, जुगबाहु तित्थयरे पडिलाभिए, इहं उप्पण्णे सेसं जहा सुबाहुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहि परिणिव्वाहिद, सव्वदुक्खाणमंतं करिहिइ ।। २३६ ।। कठिन शब्दार्थ - थूभकरंडउज्जाणे - स्तूपकरण्ड उद्यान, सुमिणदंसणं - स्वप्न देखना, कहणं - राजा से स्वप्न का कहना, जम्मणं - पुत्र का जन्म होना, बालत्तणं - बाल्यावस्था, जुव्वणे - यौवन अवस्था, दाओ - दहेज, सामी समोसरणं भगवान् महावीर स्वामी पधारे, पुव्वभवपुच्छा - पूर्व भव के विषय में पृच्छा, पडिलाभिए - प्रतिलाभित किया । भावार्थ- हे आयुष्मन् जम्बू ! इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे में जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी इस भूतल पर विचरते थे उस समय में ऋषभपुर नाम का एक नगर था । वहाँ स्तूपकरण्ड नामक उद्यान था । उसमें धन्य नामक यक्ष था। धनावह राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम सरस्वती था। उसने सिंह का स्वप्न देखा । अपना स्वप्न राजा से निवेदन किया। राजा ने कहा कि इस स्वप्न के फलानुसार तुम्हारे एक प्रतापी पुत्रं होगा। सवा नौ मास व्यतीत होने पर उसकी कुक्षि से एक प्रतापी पुत्र का जन्म हुआ । पुत्र का नाम भद्रनन्दीकुमार रखा गया। योग्य अवस्था होने पर उसे पुरुष की ७२ कलाएं सीखाई । यौवन अवस्था होने पर Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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