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________________ ३१२ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध .0000000000000000000000000000.............................. चूडामणिं रयणुक्कडं मउडं पिणद्धंति, पिणद्धित्ता दिव्वं सुमणदामं पिणद्धंति, पिणद्धित्ता दद्दरमलयसुगंधिए गंधे पिणद्धंति। तएणं तं सुबाहुकुमारं गंथिम-वेढिमपूरिम-संघाइमेणं चउव्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं विव. अलंकिय-विभूसियं करेंति। तएणं से अदीणसत्तू राया कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखंभसयसण्णिविटं लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामियउसभतुरगणरमगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं घंटावलि-महुरमणहरसरं सुभकंतदरिसणिजं णिउणोवचियमिसिमिसंत मणिरयण-घंटिया-जालपरिक्खित्तं अन्भुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामं , विज्जाहर-जमल-जंतजुत्तं विव अच्चीसहस्समालिणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिन्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेस्सं सुहफासं सस्सिरीयरूवं सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं पुरिससहस्सवाहिणीं सीयं उवटवेह। तएणं ते कोडुंबिय पुरिसा हट्ट तुट्ठ जाव उवट्ठति। तएणं से सुबाहुकुमारे सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे॥२३०॥ कठिन शब्दार्थ - उत्तरावक्कमणं - उत्तरदिशा की तरफ मुख वाला, रयाति - रखवाया, सेयपीयएहिं - सफेद और पीले यानी चांदी और सोने के, पम्हलसुउमालाए - रुएंदार सुकोमल, गंधकासाइयाए - सुगंधित रंगीन वस्त्र से, णासाणीसासवायवोज्झं - नाक के निःश्वास की हवा से उड़ने वाला यानी बहुत पतला, णियसेंति - पहनाया, पिणद्धंति - पहनाया, पालंबं पाय पलंबं - पैरों तक लटकने वाला हार, तुडियाई - त्रुटिका यानी बाहु रक्षक, केऊराइं अंगयाइं - केयूर और अङ्गद यानी दोनों भुजाओं पर भुजबन्ध, दसमुद्दियाणंतयंदसों अंगुलियों में दस मुद्रिकाएं, गंथिम वेढिम पूरिम संघाइमेणं - ग्रन्थिम-सूत में गूंथी हुई, वेष्टिम-गूंथ कर लपेटी हुई पूरिम-पूर्ण की हुई, संघातिम-फूलों के परस्पर संयोग से बनाई हुई, अणेगखंभसयसण्णिविटुं - सैकड़ों स्तम्भों वाली, लीलट्ठियसालभंजियागं - लीला करती हुई अनेक पुतलियों से युक्त, ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु सरभ-चमरकुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं - ईहामृग (भेड़िया) बैल, घोड़ा, नर, मगर, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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