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________________ प्रथम अध्ययन माता-पिता और पुत्र संवाद सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे ? तओ पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि ॥ २२२ ॥ कठिन शब्दार्थ - सरिसियाओ सरीखी, सरित्तयाओ समान त्वचा वाली, सरिव्वयाओ - समान उम्र वाली, सरिसलावण्णरूवजोव्वण गुणोववेयाओ - समान लावण्य, यौवन और गुणों वाली, सरिसेहिंतो रायकुलेहिंतो आणि अपने समान रूप, राजकुलों से लाई हुई। भावार्थ तदनन्तर सुबाहुकुमार के माता-पिता उससे कहने लगे कि हे पुत्र ! तेरे समान त्वचा, उम्र, रूप, लावण्य, यौवन और गुणों वाली अपने समान राजकुलों से लाई हुई ये तेरी पांच सौ पत्नियाँ हैं इनके साथ मनुष्य संबंधी विपुल कामभोग भोगो। फिर वृद्धावस्था आने पर भुक्त भोगी हो कर तुम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा ले लेना । तए णं से सुबाहुकुमारे अम्मापियरं एवं वयासी - "तहेय णं अम्मयाओ! जणं तुभे ममं एवं वयए सरिसियाओ जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि” एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सगा कामभोगा असुई असासया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुस्सासणीसासा दुरुयमुत्त- पुरिस - पूयबहुपडिपण्णा उच्चार- पासवणखेलजल्ल- सिंघाणगवंतपित्तसुक्क - सोणियसंभवा अधुवा अणियया असासया सडणपडण- विद्धंसणधम्मा पच्छापुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा। से के णं अम्मयाओ! जाणंति, के पुव्विं गमणाए के पच्छा गमणाए तं इच्छामि णं अम्मयाओ जाव पव्वइत्तए । २२३ । • कठिन शब्दार्थ - वंतासवा - वमन उत्पन्न होता है, पित्तासवा - पित्त उत्पन्न होते हैं, खेलासवा कफ निकलता है, सुक्कासवा - शुक्र यानी वीर्य निकलता है, सोणियासवा खून निकलता है, दुरुस्सासणीसासा खराब श्वासउच्छ्वास निकलते हैं, दुरुयमुत्तपुरिसपूयबहुपडिपुण्णा - घृणित मल, मूत्र और पीव निकलते हैं, उच्चारपासवणखेल जल्लसिंघाणगवंतपित्तसुक्कसोणियसंभवा - मल, मूत्र, कफ, मैल, वमन, पित्त, शुक्र और खून ये सब घृणित पदार्थ उत्पन्न होते हैं। भावार्थ यह सुन कर सुबाहुकुमार अपने माता-पिता से कहने लगा कि हे मातापिताओ! आपने भोग भोगने का कहा सो ये कामभोग और इनका आधारभूत यह शरीर अशुचि Jain Education International - - - - For Personal & Private Use Only - ३०१ 444 www.jalnelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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