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माता-पिता के समक्ष निवेदन
भावार्थ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्मोपदेश सुन कर और हृदय में धारण करके सुबाहुकुमार अत्यंत प्रसन्न हुआ। फिर उसने प्रभु को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा करके वंदन नमस्कार किया और निवेदन किया कि हे भगवन्! मैं निर्ग्रथ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं, प्रतीति करता हूं और रुचि रखता हूँ। मैं निग्रंथ प्रवचनों को स्वीकार करता हूं । हे भगवन् ! निर्ग्रथ प्रवचन ये ही हैं, ये इसी प्रकार हैं । ये तथ्य - सत्य हैं अन्यथा नहीं हैं। हे भगवन्! ये ही इष्ट हैं, अभीष्ट हैं एवं बारम्बार इष्ट अभीष्ट हैं। जिस प्रकार आप फरमाते हैं वैसे ही हैं, अन्यथा नहीं है किंतु हे देवानुप्रिय ! मैं अपने माता पिता से पूछने के बाद आपके पास मुण्डित होकर, गृहस्थवास को त्याग कर मुनि दीक्षा अंगीकार करूंगा। भगवान् ने फरमाया किं- हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार सुख की प्राप्ति हो वैसा करो किंतु धर्म कार्य में विलम्ब मत करो।
माता-पिता के समक्ष निवेदन
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प्रथम अध्ययन
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तएणं से सुबाहुकुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव चाउग्घंटं आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूह, दुरुहित्ता महया भडचडगरपहकरेणं हत्थिसीसस्स णयरस्स मज्झं मज्झेणं जेणामेव स भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवंदणं करेइ, करित्ता एवं वयासी - एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तएणं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स अम्मापियरो सुबाहुकुमारं एवं वयासी- धण्णो सि णं तुमं जाया ! संपुण्णो सि कयत्थो सि कयलक्खणो सि तुमं जाया ! जे णं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे सिंते, सेविय ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ।
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तणं से सुबाहुकुमारे अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी - एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे सिंते, सेवि य धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं
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