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________________ प्रथम अध्ययन - श्रावक व्रतों का पालन अणगारियं पव्वइत्तए? हंता पभू! तएणं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ हथिसीसाओ णयराओ पुप्फकरंडाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियजक्खस्स जक्खाययणाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से सुबाहु कुमारे समणोवासए जाए अभिगय जीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवरणिज्जरकिरियाहिगरण बंधमोक्खकुसलें असहिज्ज-देवासुर-णागसुवण्णजक्खरक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं णिग्गंथाओ पावयणाओं अणइक्कमणिज्जे णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लढे गहियढे पुच्छियट्टे अहियगढे विणिच्छियढे अट्टिमिंज-पेम्माणुरागरते अयमाउसो णिग्गंथे पावयणे अढे अयं परमढे सेसे अणढे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे बहूहिं सीलव्वय-गुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं चाउद्दसट्टमुद्दिट्ट-पुण्णिमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं पीढफलग-सिज्जासंथारएणं ओसह-भेसज्जेणं च पडिलाभेमाणे अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥२१५॥ - कठिन शब्दार्थ - कयेवणमालप्पियजक्खस्स जक्खाययणाओ - कृतवन मालप्रिय यक्ष के यक्षायतन से, अभिगय जीवाजीवे - जीव और अजीव के स्वरूप को भली प्रकार जान लिया, उवलद्धपुण्णपावे - पुण्य और पाप को जाना, आसव-संवर-णिज्जर किरियाहिगरण-बंध-मोक्खकुसले - आम्रव, संवर, निर्जरा, क्रियाधिकरण, बंध और मोक्ष के स्वरूप को जानने में कुशल, असहिज्जदेवासुर-णाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णरकिंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं- देव असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्ण कुमार, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किपुरुष, गरुड़, गन्धर्व, महोरग आदि देवों के समूह की सहायता न लेने वाला, णिग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे - कोई भी उसको निर्ग्रन्थ प्रवचन से विचलित नहीं कर सकता था, णिस्संकिए - निःशंकित-शंका रहित, णिक्कंखिए - निःकांक्षित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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