SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन - सुबाहुकुमार की जिज्ञासा २७३ वा मुगुंदमहेइ वा णागमहेइ वा जक्खमहेइ वा भूयमहेइ वा कूवमहेइ वा तडागमहेइ वा णईमहेइ वा दहमहेइ वा पव्वयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा चेइयमहेइ वा थूभमहेइ वा जण्णं एए बहवे उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा णाया कोरव्वा खत्तिया खत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता सेणावई पसत्थारो लेच्छइ माहणा इन्भा जहा उववाइए जाव सत्थवाहप्पभिइए ण्हाया कयबलिकम्मा जाव णिग्गच्छंति एवं संपेहेइ एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ सदावित्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया! अज्ज हत्थिसीसे णयरे इंदमहेइ वा जाव णिग्गच्छंति? तए णं से कंचुइज्जपुरिसे सुबाहुणा कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्टे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहिय विणिच्छिए करयलपरिग्गहियं सुबाहुकुमारं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावित्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया! अज्ज हत्थिसीसे णयरे इंदमहेइ वा जाव णिग्गच्छति। एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्ज समणे भगवं महावीरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी हत्थिसीसस्स णयरस्स बहिया पुप्फकरंडे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हित्ता णं जाव विहरइ॥२०८॥ । ___ कठिन शब्दार्थ - तिविहाए पज्जुवासणाए - तीन प्रकार की पर्युपासना, जणसण्णिवायंमनुष्यों के कोलाहल को, इंदमहेइ - इन्द्र महोत्सव, आगमणगहिय विणिच्छिए - आगमन का निश्चय करके, अहापडिरूवं - यथायोग्य, उग्गहं - अभिग्रह को, उगिण्हित्ता - ग्रहण करके। . भावार्थ - भगवान् के आगमन को जान कर परिषद् यानी जनसमूह भगवान् को वन्दना करने के लिए निकला। जिस प्रकार उववाई सूत्र में कोणिक राजा का वर्णन किया गया है उसी प्रकार अदीनशत्रु राजा भी भगवान् को वंदना करने के लिए निकला। वहाँ जाकर वह तीन प्रकार की पर्युपासना से यानी मन, वचन, काया से भगवान् की पर्युपासना करने लगा। उसी समय मनुष्यों के उस महान् शब्द को यावत् मनुष्यों के कोलाहल को सुन कर एवं देख कर उस सुबाहुकुमार के मन में इस प्रकार विचार उत्पन्न हुआ कि क्या आज हस्तिशीर्ष नगर में इन्द्र महोत्सव है अथवा कार्तिकेय महोत्सव है अथवा वासुदेव बलदेव का महोत्सव है अथवा नागकुमार देवों का महोत्सव है अथवा यक्ष महोत्सव है अथवा भूत महोत्सव है अथवा कूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy