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________________ २६६ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध । store..................................................... के समान थे। अतएव उनके कोये विकसित कमल सरीखे उज्वल और पलक वाले थे। उनकी नाक गरुड़ की तरह लम्बी, सीधी और ऊंची थी। उनके अधरौष्ठ यानी नीचे का ओठ शिला रत्न, प्रवाल और बिम्ब फल के समान लाल था। उनके दांतों की पंक्ति स्वच्छ चन्द्रमा, अत्यंत . निर्मल शंख, गाय के दूध का फेन, कुन्दपुष्प, जल का वेग और कमलनाल के समान सफेद थी। उनके दांत टूटे हुए और छिदरे-विशेष दूरी वाले न थे। उनके दांत अतिशय स्वच्छ और स्निग्ध तथा मनोहर थे। एक दांत की पंक्ति की तरह ही अनेक दांत थे क्योंकि घने होने से एक दूसरे से अलग मालूम न पड़ते थे। उनका तालु और जिह्वा अग्नि से निर्मल किये हुए, पानी से धोये हुए तथा फिर अग्नि से तपाये हुए सोने के समान लाल थी। विवेचन - उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी इस भूतल पर विचरते थे। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घाती कर्मों का क्षय करके उन्होंने केवल ज्ञान केवलदर्शन उपार्जन कर लिये थे अतएव. वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। राग द्वेष के विजेता थे। वे स्वयं कृतकार्य हो चुके थे केवल संसार के प्राणियों का उद्धार करने के लिए वे धर्मोपदेश फरमाते थे। उनका शरीर सर्वोत्कृष्ट था। शास्त्र में उनके शरीर के प्रत्येक अंग का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में उनके मस्तक से लेकर तालु और जिह्वा का वर्णन किया गया है। शेष अंगों का वर्णन आगे के पाठ में किया जाता है। अवट्टियसुविभत्त-चित्तमंसू मंसल-संठिय-पसत्थ-सहूलविउल-हणूए चउरंगुलसुप्पमाणं कंबुवरसरिसग्गीवे वरमहिस-वराह-सीह-सहूल-उसभणागवर पडिपुण्ण विउलक्खंधे जुगसण्णिभ-पीणरइयपीवर पउह-सुसंठिय-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-घण-थिर-सुबद्धसंधि-पुरवर-फलिह-वट्टियभुए भुअईसर-विउलभोग आयाणफलिह-उच्छूट-दीहबाहू रत्ततलोवइय-मउय-मंसलसुजाय लक्खण-पसत्थ अच्छिद्दजालपाणी पीवरकोमलवरंगुली आयंब-तंबतलिण-सुइरुइल-णिद्धणक्खे चंदपाणिलेहे सूरपाणिलेहे संखपाणिलेहे चक्कपाणिलेहे विसासोत्थियपाणिलेहे चंद-सूर-संख-चक्क-विसासोस्थियपाणिलेहे कणगसिलातलुज्जल-पसत्थ समतल उवचिय विच्छिण्णपिहुलवच्छे सिरिवच्छंकियवच्छे अकरंडुयकणग रुययणिम्मल सुजायणिरुवहय देहधारी अट्ठसहस्स पडिपुण्ण वरपुरिसलक्खणधरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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