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________________ प्रथम अध्ययन - माता-पिता द्वारा महलों का निर्माण २५३ सुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठियपसत्थवेरुलियखंभं - तोरणों एवं विशेष आकार वाले सुंदर और स्वच्छ जड़े हुए वैडूर्यमणि. के खंभों पर सुंदर सुंदर पुतलियां बनाई गई थी, णाणामणिकणगरयणखचितउज्जलं - अनेक मणि सुवर्ण रत्नों से प्रकाशित, बहुसमसुविभित्तणिचियरमणिज्ज भूमिभागं - वहाँ की भूमि अच्छी तरह रची हुई समतल और अतिशय रमणीय थी, खंभुग्गयवयरवेइयापरिगयाभिरामं - खंभों के ऊपर हीरों की बनी हुई वेदिकाओं से मनोहर, विज्जाहरजमलजुयलजुत्तं - विद्याधर और विद्याधरियों के जोड़ों के चित्र, भिसमाणं - दीप्त, भिब्भिसमाणं - अतिशय दीप्त, चक्खुल्लोयणलेसं - जिसे देखते ही आंखें उसमें गड़ जाती थी, णाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडियग्ग सिहरं - उसका शिखर अनेक तरह के पांच वर्ण वाले घंटा और पताकाओं से मण्डित था, धवलमरीचिकवयंसफेद किरण रूप कवच, लाउल्लोइयमहियं - लिंपा पुता हुआ, गोसीससरसरत्तचंदणदहरदिण्णपंचंगुलियतलं - घिसे हुए ताजे गोशीर्ष चंदन और रक्त चंदन के पांच अंगुलियों सहित हाथों के छापे लगे हुए, चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं - तोरण और प्रतिद्वारों पर चंदन लिप्त घट स्थापित किये गये थे, आसत्तोसत्तविउलवटेवग्यारियमल्लदामकलावं - नीचे से ऊपर तक लम्बी चौड़ी फूलों की मालाएं लटकी हुई थीं, पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं - पांच वर्षों के ताजे फूलों के ढेर लगे हुए थे। भावार्थ - इसके पश्चात् वह सुबाहुकुमार बहत्तर कलाओं में निपुण हो गया। उसके सोये हुए नौ अंग जागृत हो गये अर्थात् विशिष्ट ज्ञान वाले हुए। वह अठारह देश की भाषाओं में प्रवीण हो गया। गीतों का प्रेमी और गायन तथा नृत्य करने में प्रवीण हो गया। घोड़े, हाथी और रथ द्वारा युद्ध करने वाला हुआ। बाहु युद्ध करने वाला, भुजाओं को मर्दन करने, पर्याप्त भोग भोगने में समर्थ हुआ। वह अपने साहस के कारण अकाल में ही विचरण करने वाला हो गया। तदनन्तर उस सुबाहुकुमार के माता पिता ने सुबाहुकुमार को बहत्तर कलाओं में प्रवीण यावत् विकालचारी हुआ देखा, देख कर पांच सौ उत्तम महल बनवाये। वे महल बहुत ऊंचे थे और स्वच्छ प्रभा से ऐसे मालूम होते थे मानो हंसते थे। मणि, सुवर्ण और रत्नों से रचिल होने से विचित्र थे। विजय की सूचना करने वाली वायु से हिलती हुई पताकाओं के ऊपर की पताकाओं से तथा छत्र और छत्रों के ऊपर के छत्रों से युक्त थे। वे बहुत ऊंचे थे अतः ऐसे मालूम होते थे मानो उनके शिखर आकाशतल को लांघ रहे हों। जालियों के मध्य भाग में अथवा खिड़कियों में लगे हुए रत्न चमकते थे। खम्भे, मणि और सुवर्ण से जड़े हुए थे। उनमें शतपत्र कमल खिले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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