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________________ २४४ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध .......................................................... विवेचन - पहले दिन जन्म संबंधी क्रियाएं, दूसरे दिन रात्रि जागरण, तीसरे दिन चन्द्र सूर्य के दर्शन कराये गये। बारहवें दिन राजा और रानी ने बहुत-सा आहारादि तैयार करवाया और मित्रों को तथा कुटुम्ब परिवार के समस्त लोगों को आमंत्रण देकर जिमाया। मूलपाठ में आये हुए ‘असणं पाणं' आदि शब्दों के अर्थ इस प्रकार होता है - १. अशन-जिससे भूख की निवृत्ति हो वह अशन कहलाता है जैसे दाल, भात, रोटी आदि। २. पान - जिससे प्यास बुझे वह पान कहलाता है जैसे जल, धोवन आदि। ३. खादिम - जिससे भूख और प्यास दोनों की ही निवृत्ति हो वह खादिम (खाद्य) कहलाता है। जैसे - फल, मेवा आदि। ४. स्वादिम - जो वस्तु मुख के स्वाद के लिये खाई जाय वह स्वादिम (स्वाद्य) कहलाती है जैसे - लोंग, सुपारी, इलायची, चूर्ण आदि। नामकरण संस्कार जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसूइब्भूया तं मित्तणाइणियगसयणसंबंधि-परियण-गणणायग जाव विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्मा0ति, सक्कारिता सम्माणित्ता एवं वयासी-अम्हं इमस्स दारगस्स णामेणं सुबाहुकुमारे। तस्स दारगस्स अम्मापियरों अयमेयारूवं गोण्णं गुणणिप्फण्णं णामधेनं करेंति सुबाहुत्ति ॥१९६॥ कठिन शब्दार्थ - जिमियभुत्तुत्तरागया - भोजन कर लेने के पश्चात्, आयंता - शुद्ध जल से कुरले किये, चोक्खा - हाथ के लेप और कण आदि को धोकर साफ किये, परमसुइन्भूया- परम शुचिभूत यानी परम पवित्र हो कर, गोण्णं - गुण युक्त, गुणणिप्फणं - गुण निष्पन्न। भावार्थ - भोजन कर लेने के पश्चात् राजा और रानी आकर यथास्थान बैठ गये फिर शुद्ध जल से कुल्ले किये, हाथ के लेप और कण आदि को धोकर साफ किये और परम शुचि भूत यानी परम पवित्र होकर मित्र, ज्ञाति, स्वजन संबंधी, परिजन और गण नायक यावत् दण्डनायक आदि का विपुल फूल, वस्त्र, सुगंधित माला और अलंकारों से सत्कार किया, सम्मान किया, सत्कार सम्मान करके इस प्रकार कहने लगे कि हमारे इस पुत्र का नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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