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________________ २३२ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ........................................................... . भावार्थ - तदनन्तर अदीनशत्रु राजा के सेवकों द्वारा बुलाए हुए वे स्वप्न पाठक हर्षित और संतुष्ट हुए फिर स्नान किया। स्नान के बाद बलिकर्म यावत् प्रायश्चित्त करके यानी ललाट पर मांगलिक तिलक और मस्तक पर दही चावल आदि छिटक कर यावत् स्नान संबंधी सारे कार्य करके थोड़े किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके मस्तक पर दूब और सरसों आदि रख कर अपने अपने घरों से निकले, निकल कर हस्तिशीर्ष नगर के बीचोबीच होकर जहाँ पर अदीनशत्रु राजा के महल का मुख्य दरवाजा था वहाँ पर आये। वहाँ आकर सब : एक जगह मिले अर्थात् एक जगह इकट्ठे हुए, इकट्ठे होकर अदीनशत्रु राजा के महल के मुख्य द्वार से प्रवेश किया, प्रवेश करके जहाँ पर बाहरी उपस्थानशाला-सभा थी एवं. जहाँ पर ... अदीनशत्रु राजा था वहाँ पर आये आकर जय विजय शब्दों से, अदीनशत्रु राजा को जय विजय' .. रूप आशीर्वाद के शब्दों से बधाया। अदीनशत्रु राजा ने उन सब की अर्चना की, वंदना की, पूजा की, मान किया, सत्कार किया और सम्मान किया। तत्पश्चात् वे पहले से रखे हुए भद्रासनों पर पृथक्-पृथक् बैठ गये। . . विवेचन .- अदीनशत्रु राजा के सेवकों द्वारा बुलाये हुए स्वप्न पाठक स्नान करके तथा उत्तम वस्त्राभूषणों से शरीर को अलंकृत करके राज सभा में आये। राजा ने उन सब का आदर सत्कार किया। तत्पश्चात् वे वहाँ पर पहले से रखे हुए भद्रासनों पर बैठ गये। , ___जहाँ पर स्नान संबंधी सारा पाठ न लिख कर पाठ संकोच कर दिया जाता है वहाँ पर "कयबलिकम्मा" शब्द आता है किन्तु जहाँ पर स्नान संबंधी सारा पाठ आता है वहाँ पर "कयबलिकम्मा" शब्द नहीं आता है जैसे कि जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भरत चक्रवर्ती के स्नान का पूरा वर्णन आता है और इसी तरह उववाई सूत्र में कोणिक राजा के स्नान का पूरा वर्णन आता है। इन दोनों जगह "कयबलिकम्मा" पाठ नहीं है। इससे यह सारांश निकलता है कि जहाँ पर स्नान संबंधी पाठ का संकोच कर दिया जाता है वहीं पर ‘कयबलिकम्मा' शब्द आता है। 'कयबलिकम्मा' शब्द का गृह देवता का पूजन करना ऐसा अर्थ करना संगत नहीं है क्योंकि रायपसेणी (राजप्रश्नीय) सूत्र में जहाँ अरणि से अग्नि निकालने के लिए कठियारे का दृष्टान्त दिया गया है वहाँ जंगल में जब वे कठियारे स्नान करने के लिए बावड़ी में गये हैं वहाँ भी 'कयबलिकम्मा' पाठ आया है। यदि ‘कयबलिकम्मा' का अर्थ 'गृह देवता का पूजन करना' किया जाय तो यह अर्थ कैसे संगत होगा? क्योंकि वहाँ जंगल में बावड़ी में गृह देवता कहां थे? इसलिए ‘कयबलिकम्मा' शब्द का 'गृह देवता का पूजन करना' ऐसा अर्थ करना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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