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________________ प्रथम अध्ययन - राजा का आदेश । २२७ धारण किये, मउडदित्तसिरए - मस्तक पर मुकुट धारण किया, हारोत्थयसुकयरइयवच्छे - हारों के वक्षस्थल के ढक जाने से सुंदर मालूम होने लगा, पालंबपलंबमाणसुकयपडउत्तरिज्जेलटकता हुआ लम्बा सा बढिया दुपट्टा धारण किया, मुद्दियापिंगलंगुलीए - अंगुलियां अंगुठियों से पीली हो गई, णाणामणिकणगरयण विमलमहरिहणिउणोविय-मिसिमिसंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठलट्ठ-संठिय-पसत्थ-आविद्धवीरवलए - चतुर कारीगरों द्वारा बनाये गये नाना तरह के विमल, विशिष्ट, मनोहर, देदीप्यमान, अच्छे जोड़ वाले बहुमूल्य मणि रत्नों से युक्त सोने के वीरवलय यानी विजयसूचक कड़े पहने, सकोरंटमल्लदामेणं.- कोरण्टक वृक्ष के फूलों की मालाओं से बने हुए, चउचामरवालवीइयंगे - जिसके शरीर पर चार चामर ढुलाये जा रहे हैं, मंगलजयसद्दकयालोए - जिसे देख कर लोग जय-जय शब्द कर रहे हैं, अणेगगणनायग-दंडणायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारियअमच्च चेड-पीठमद्द-णगर-णिगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूयसंधिवाल - अनेक गणनायक, दण्डनायक, मांडलिक राजा, युवराज, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, मंत्री, महामंत्री, गणितज्ञं, दौवारिक (दरबान) अमात्य, सेवक, पीठमर्दक (समान उम्र वाले मित्र), नगरनिवासी, निगम (राजकर्मचारी) सेठ, सेनापति, सार्थवाह, दूत और संधिपाल (संधि की रक्षा करने वाले), गहगण-दिप्पंत-रिक्खतारागणाण - ग्रहगण से दीप्त आकाश में स्थित तारागणों के, धवलमहामेहणिग्गए-उज्ज्वल और बड़े बड़े बादलों में से निकले हुए, ससिव्व - चन्द्रमा के समान। भावार्थ - व्यायामशाला से निकल कर जहां पर स्नानघर था वहां आया। आकर स्नानघर में प्रवेश किया, स्नानघर में प्रवेश करके चारों तरफ से एवं सब तरफ से जालियों से सुंदर जिसका तल भाग विचित्र मणि और रत्नों से जड़ा हुआ है ऐसे सुंदर स्नान मंडप में नानाप्रकार की मणियों से रत्नों से जड़ी हुई स्नान करने की चौकी पर सुखपूर्वक आराम से बैठा। तत्पश्चात् वहां पर राजा ने सुखोदक-शरीर को सुख उपजाने वाला जल अथवा शुभ उदक यानी पवित्र स्थानों से लाया हुआ जल, पुष्पोदक-फूलों की गंध से युक्त जल, गंधोदक-चंदन आदि सुगंधित पदार्थों की गंध से युक्त जल और शुद्धोदक-स्वाभाविक शुद्ध जल से स्वास्थ्यकर स्नान विधि से अनेक प्रकार के सैकड़ों कौतुकपूर्वक बार बार स्नान किया। स्वास्थ्य कर विधि से स्नान कर चुकने के बाद रुएंदार सुंदर सुगंधित सुकोमल वस्त्र से शरीर को पोंछा और बहुमूल्य नवीन वस्त्र पहना, सरस सुगंधि से युक्त गोशीर्ष चंदन का शरीर पर लेप किया, पवित्र फूलमाला धारण की और केसर आदि का लेप किया, मणियों और सोने के गहने पहने। गले में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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