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________________ उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठत्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ ॥ १८१ ॥ पच्चूसकालसमयंसि गंधुद्धयाभिरामं कठिन शब्दार्थ प्रातः काल होने पर, उवट्टणसालं उपस्थानशाला-सभा स्थान को, गंधोदयसित्तसुड्यसम्मज्जिओवलित्तं - सुगंधित जल से सींच कर पवित्र और साफ करो, पंचवण्णसरस- सुरभि - मुक्कपुप्फ-पुंजोवयारकलियं - पांच वर्ण के सरस, सुगंधित फूलों से युक्त करो, कालागुरुपवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क - धूव- डज्झत-मघमघंतचीड़, लोबान आदि की मघ मघायमान गंध से शोभित, कृष्णागर, फुल्लुप्पलकमल-कोमलुम्मीलियम्मि- कोमल उत्पल और कमलों को विकसित करने वाले, अहापंडुरे - श्वेत, रत्तासोगपग़ास - लाल अशोक का प्रकाश, किंसुय - केसूडे का फूल, सुयमुह - तोते की चोंच, गुंजद्धराग चिरमटी का आधा लाल हिस्सा, बंधुजीवग दुपहरिया का फूल अथवा सावन में पैदा होने वाला ममोलिया नामक लाल जीव, पारावयचलणणयण - कबूतर के पैर और नेत्र, परहुयसुरत्तलोयण. - कोयल के लाल नेत्र, जासुयणकुसुम - जासुमिणकुसुम जवा कुसुम, जलियजलण जलती हुई अग्नि, तवणिज्जकलस - सोने का कलश, हिंगुलयणिगर - हिंगलू का समूह, रूवाइरेगरेहंत सस्सिरीएरूप यानी प्रभा से भी अधिक प्रभा और शोभा वाले, दिणकरकर- परंपरावयारपारद्धम्मि अंधयारे- सूर्य की किरणों के गिरने से अंधकार का विनाश प्रारंभ होने पर, बालातवकुंकुमेणबाल सूर्य के प्रकाश रूपी कुंकुम से, खड़यव्वजीवलोए - जीव लोक के रंगे जाने पर, लोयण विस आणु आसविगसंत - विसददंसियम्मि - देखे जा सकने वाले विषय यानी पदार्थों का स्पष्ट प्रतिभास होने पर, कमलागरसंडबोहए - कमलों को विकसित करते हुए, सहस्स रस्सिम्मि हजार किरणों वाले | - Jain Education International प्रथम अध्ययन - राजा का आदेश - - - - २२३ 00 - For Personal & Private Use Only - भावार्थ - तदनन्तर प्रातः काल होने पर अदीनशत्रु राजा ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा कि - हे देवानुप्रियो ! आज शीघ्र ही बाहर की उपस्थान शाला ( सभा स्थान) को विशेष रूप से परम रमणीय-कचरा आदि निकाल कर साफ करो और सुगंधित जल से सींच कर पवित्र करो, पांच वर्ण के सरस, सुगंधित फूलों से युक्त करो, कृष्णागर, चीड़, लोबान आदि की मघमघायमान गंध से शोभित अतएव गंध की गोली के समान अनेक प्रकार की उत्तम उत्तम सुगंधों से सुगंधित करो और कराओ। इस प्रकार मेरी इस आज्ञा को पूरी करके मुझे सूचित करो । - www.jalnelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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