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________________ २१४ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध नीची थी। जैसे गंगा नदी के तट की रेत पर चलने से पैर नीचे चला जाता है उसी प्रकार उस शय्या पर पैर रखने से पैर नीचे धस जाता था क्योंकि वह बहुत कोमल थी। कसीदा किये हुए सूती और अलसीमय वस्त्र का चादर उस पर बिछा हुआ था। धूलि आदि से रक्षा करने के लिए एक वस्त्र अन्य समय में उस पर ढका रहता था। उस पर मच्छरदानी लगी हुई थी। वह अतिशय रमणीय थी। विशिष्ट चर्म, रुई, बूर यानी एक प्रकार की वनस्पति विशेष, नवनीत अर्थात् मक्खन और तूल यानी आक की रुई के समान अतिशय कोमल थी। सुगंधित युक्त उत्तमोत्तम फूलों से, सुगंधित चूर्ण से तथा शय्या को शोभित करने वाली अन्य उत्तम पदार्थों से युक्त थी। ऐसी शय्या पर अर्द्ध रात्रि के समय सुप्त जागृत अवस्था में अर्थात् न गाढ निद्रा में सोती हुई और न पूर्ण जागती हुई यानी अर्द्ध निद्रित अवस्था में वह धारिणी रानी इस प्रकार के उदार, कल्याणकारी, सुखकारी, धन्यकारी, मंगलकारी, सश्रीक अर्थात् सुंदर एक महान् स्वप्न देख कर जागृत हुई। ___ हार-रयय-खीर-सागर ससंक-किरणदगरय-रययमहासेल-पंडुर . तरोरुरमणिज्जपेच्छणिज्जं थिरलट्ठपउट्टवट्टपीवर-सुसिलिट्ट-विसिट्ट तिक्खदाढा विडंबियमुहं परिकम्मियजच्च-कमल-कोमल-माइय• सोभंतलट्ठउटुं रत्तुप्पलपत्तमउय-सुकुमालतालुजीहं मूसागयपवर-कणग ताविय-आवत्तायंत वट्टतडिविमल-सरिसणयणं विसालपीवरोरुं पडिपुण्ण विमलखधं मिउविसय सुहुमलक्खणपसत्थ विच्छिण्ण केसरसडोवसोहियं ऊसिय-सुणिम्मिय-सुजाय-अप्फोडिय-लंगूलं सोमं सोमाकारं लीलायंतं जंभायंतं णहयलाओ ओवयमाणं णिययवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा ॥१७३॥ ___ कठिन शब्दार्थ - हार-रयय-खीरसागर-ससंक-किरण-दगरय-रयय-महासेल-पंडुर तरोरुरमणिज्ज पेच्छणिज्जं - हार, चांदी, क्षीर समुद्र, चन्द्रमा की किरण, जल प्रवाह और रजत महाशैल यानी वैताढ्य पर्वत के समान बहुत श्वेत रमणीय अतएव दर्शनीय, थिरलट्ठपउट्ठ वट्टपीवर-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबियमुहं - स्थिर, मनोहर कलाई युक्त तथा गोल स्थूल मिली हुई उत्तम तेज दाढों युक्त विस्तृत मुख वाले, परिकम्मियजच्च कमल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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