SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाक सूत्र- द्वितीय श्रुतस्कन्ध प्रसन्न हो जाता था, वह दर्शनीय थी, वह अभिरूप यानी मनोहर और प्रतिरूप अर्थात् देखने वालों को उसका नवीन नवीन रूप मालूम होता था । वह अदीनशत्रु राजा में अनुरक्त थी, अविरक्त थी। वह इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध इन पांच प्रकार के मनुष्य संबंधी कामभोगों को भोगती हुई विचरती थी । से विवेचन - अदीनशत्रु राजा के धारिणी नाम की पटरानी थी जो रानी के समस्त लक्षणों युक्त थी । अदीनशत्रु राजा में वह अनुरक्त थी। वह उसके साथ मनुष्य संबंधी कामभोग भोगती हुई रहती थी। २१२ ** धारिणी का स्वप्न - दर्शन तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भिंतरओ सचित्तकम्मे बाहिरओ दुमियघट्टमट्ठे विचितउल्लोयचिल्लियतले, मणिरयणपणासियंधयारे, बहुसमसुविभत्तदेसभाए पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु- पवर- कुंदुरुक्क - तुरुक्क - धूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामे सुगंधिवरगंधिए गंधवट्टिभूए तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्झेणयगंभीरे गंगापुलिणवालय - उद्दालसालिसए उवचियखोमियदुगुल्ल पट्टपडिच्छायणे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणग - रुयबूर - णवणीय- तूलफासे सुगंधवरकुसुम-चुण्ण-सयणोवयारकलिए अद्धरत्त कालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी अयमेयारूवं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरियं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुद्धा ॥ १७२ ॥ कठिन शब्दार्थ - तंसि तारिसगंसि - वैसे अर्थात् पुण्यात्माओं के रहने योग्य, वासघरंसि - महल में, सचित्तकम्मे - चित्रों से युक्त, दुमियघट्टमट्ठे - घिस घिस कर सुंदर किया गया, विचित्तउल्लोयचिल्लियतले ऊपर का भाग विविध चित्रों से युक्त तथा नीचे का भाग देदीप्यमान, मणिरयणपणासियंधयारे मणियों और रत्नों के प्रकाश से जहां का अंधकार नष्ट हो गया था, बहुसमसुविभत्तदेसभाए - एकदम समतल ऊंचा नीचा नहीं, पंचवण्णसरस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy