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________________ प्रथम अध्ययन - नगर आदि का वर्णन २०५ की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। अतः सुधर्मा अनगार के चरणों में उपस्थित होकर विनयपूर्वक इस प्रकार निवेदन किया - हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाक श्रुत के अंतर्गत दुःखविपाक के दश अध्ययनों का जो वर्णन किया है वह मैंने आपके मुखारविंद से श्रवण कर लिया है अब कृपा कर विपाक सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध सुखविपाक में प्रभु ने क्या भाव फरमाये हैं सो फरमाने की कृपा करें। जंबूस्वामी की जिज्ञासा को देख, आर्य सुधर्मा स्वामी ने फरमाया कि - हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाकश्रुत के द्वितीय श्रुतस्कन्ध सुखविपाक में दस अध्ययन फरमाये हैं जो इस प्रकार हैं - १. सुबाहु २. भद्रनंदी ३. सुजात ४. सुवासव ५. जिनदास ६. धनपति ७. महाबल ८. भद्रनंदी ६. महाचन्द्र और १०. वरदत्त। प्रथम अध्ययन का प्रारंभ इस प्रकार है - नगर आदि का वर्णन - जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबु अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे णामं णयरे होत्था रिद्ध०। तस्स णं हत्थिसीसस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं पुप्फकरंडए णामं उजाणे होत्था सव्वोउय०। तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-दिव्वे। तत्थ णं हत्थिसीसे णयरे अदीणसत्तू णामं राया होत्था महया०। तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणी पामोक्खं देवी सहस्सं ओरोहे यावि होत्था॥१७०॥ __ भावार्थ - हे भगवन्! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दश अध्ययन प्रतिपादित किये हैं तो हे भगवन्! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन में क्या अर्थ प्रतिपादित किया है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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