SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंजु णामं दसमं अज्झयणं अंजू नामक दसवां अध्ययन आगमकार दुःखविपाक सूत्र के नौवें अध्ययन में देवदत्ता के कथानक से विषय भोगों के दुष्परिणामों का दिग्दर्शन कराने के बाद अंजू नामक इस दसवें अध्ययन में भी विषय वासना के जंजाल में फंस कर देवदुर्लभ मानव भव का दुरुपयोग करने वाली अंजूश्री नामक एक नारी के जीवन का वर्णन करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं - उत्पक्षेप-प्रस्तावना जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स उक्खेवो एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वद्धमाणपुरे णामं णयरे होत्था, विजयवद्धमाणे उज्जाणे, माणिभद्दे जक्खे, विजयमित्ते राया, तत्थ णं धणदेवे णामं सत्थवाहे होत्था अड्डे०, पियंगू णामं भारिया, अंजू दारिया जाव सरीरा, समोसरणं परिसा जाव पडिगया।।१६२॥ .. भावार्थ - दशवें अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये। हे जंबू! उस काल उस समय में वर्द्धमानपुर नामक एक नगर था। वहां विजय वर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें माणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। विजयमित्र वहां के राजा थे। वहां पर धनदेव नामक एक सार्थवाह रहता था जो कि बहुत धनवान एवं प्रतिष्ठित था। उसके प्रियंगू नामक भार्या थी तथा उसकी अञ्जू नाम की एक बालिका थी जो उत्कृष्ट-उत्तम शरीर वाली थी। उस काल उस समय में विजय वर्द्धमान नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ यावत् परिषद् धर्मदेशना सुन कर वापिस चली गई। विवेचन - विपाक सूत्र के नौवें अध्ययन में दत्त सेठ की पुत्री और कृष्णश्री की आत्मजा देवदत्ता का आद्योपान्त वृत्तांत सुनने के बाद जंबूस्वामी ने आर्य सुधर्मास्वामी से नम्रतापूर्वक निवेदन किया - हे भगवन्! दुःखविपाक सूत्र के नववें अध्ययन का भाव आपके श्रीमुख से सुनने के बाद अब मेरी दसवें अध्ययन का भाव सुनने की इच्छा है सो कृपा कर फरमाइये कि श्रमण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy