SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૬ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ............................................. • विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वैश्रमण राजा द्वारा समारोह पूर्वक संपन्न कराये गये युवराज पुष्यनंदी और देवदत्ता के विवाह का विस्तृत वर्णन किया गया है। पुष्यनंदी द्वारा मातृसेवा तए णं से पूसणंदी कुमारे देवदत्ताए सद्धिं उप्पिं पासायवरगए फुटमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धणाडएहिं उवगिज्जमाणे जाव विहरइ। तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते णीहरणं जाव राया जाए। तए णं से पूसणंदी राया सिरीए देवीए मायाभत्तए यावि होत्था, कल्लाकल्लिं जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सिरीए देवीए पायवडणं करेइ करेत्ता सयपागसहस्स-पागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगावेइ अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए (चम्मसुहाए) रोमसुहाए चउव्विहाए संवाहणाए संवाहावेइ संवाहावेत्ता सुरभिणा गंधवट्टएणं उव्वट्टावेइ उव्वट्टावेत्ता तिहिं उदएहिं मज्जावेइ तंजहा - उसिणोदएणं सीओदएणं गंधोदएणं, मज्जावेत्ता विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेइ भोयावेत्ता सिरीए देवीए ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए जिमियभुत्तुत्तरागयाए तए णं पच्छा प्रहाइ वा भुंजइ वा उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ॥१५७॥ ___ कठिन शब्दार्थ- पासायवरगए - उत्तम महल में ठहरा हुआ, फुटमाणेहिं मुइंगमत्थएहिंबज रहे हैं मृदंग जिनमें ऐसे, बत्तीसइबद्धणाडएहिं - बत्तीस प्रकार के नाटकों द्वारा, सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं - शतपाक और सहस्रपाक-सौ और हजार औषधियों के मिश्रण से बनाये हुए तैलों से, अब्भंगावेइ - मालिश करता है, अट्ठिसुहाए - अस्थि को सुख देने वाले, तयासुहाए - त्वचा को सुखप्रद, संवाहणाए - संवाहना-अंग मर्दन से। भावार्थ - तदनन्तर राजकुमार पुष्यनंदी देवदत्ता भार्या के साथ उत्तम प्रासाद में विविध प्रकार के वाद्य और जिनमें मृदंग बज रहे हैं ऐसे बत्तीस प्रकार के नाटकों द्वारा उपगीयमान (प्रशंसित) होते हुए यावत् समय व्यतीत करने लगे। कुछ समय पश्चात् राजा वैश्रमण कालधर्म को प्राप्त हो गये। उनका निस्सरण यावत् मृतक कर्म करके युवराज पुष्यनंदी राजा बन गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy