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________________ १८२ . विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ........................................................... जिसका समुदाचार-आचरण हो) होता हुआ अत्यधिक पाप कर्म को उपार्जित करके चौतीस सौ (३४००) वर्ष की परमायु पाल कर कालमास में काल करके छठी नरक पृथ्वी में उत्कृष्ट बाईस (२२) सागरोपम स्थिति वाले नैरयिकों में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् सिंहसेन का जीव छठी नरक से निकल कर रोहीतक नगर में दत्त सार्थवाह की कृष्णश्री भार्या के उदर में पुत्री रूप से उत्पन्न हुआ। ___तदनन्तर उस कृष्णश्री ने लगभग नौ मास पूर्ण होने पर बालिका को जन्म दिया जो कि सुकुमाल अत्यंत कोमल हाथ पैर वाली यावत् सुरूपा-परम सुंदरी थी। तत्पश्चात् उस कन्या के माता-पिता ने जन्म से ले कर बारहवें दिन विपुल अशनादिक तैयार कराया यावत् मित्र ज्ञाति आदि को निमंत्रित करके, भोजन आदि करा कर कन्या का नामकरण संस्कार करते हुए कहा कि हमारी इस कन्या का नाम देवदत्ता रखा जाता है। तब वह देवदत्ता पांच धायमाताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त होने लगी। तदनन्तर वह देवदत्ता बालिका बाल्यावस्था से मुक्त होकर यावत् यौवन रूप और लावण्य से अत्यंत उत्तम एवं उत्कृष्ट शरीर वाली हो गई। विवेचन - सिंहसेन द्वारा किये गये निर्दयता एवं क्रूरता पूर्ण कृत्य तथा उन कर्मों के प्रभाव से छठी नरक में जाना, तत्पश्चात् रोहीतक नगर के दत्त सेठ की सेठानी कृष्णश्री के उदर से लड़की के रूप में उत्पन्न होने आदि का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। देवदत्ता का रूप-लावण्य तए णं सा देवदत्ता दारिया अण्णया कयाइ ण्हाया जाव विभूसिया बहूहिं . - खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता उप्पिं आगासतलगंसि कणगतिंदूसेणं कीलमाणी विहरइ। इमं च णं वेसमणदत्ते राया पहाए जाव पायच्छित्ते विभूसिए आसं दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहिं सद्धिं संपरिवुडे आसवाहणियाए णिज्जायमाणे दत्तस्स गाहावइस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं से वेसमणे राया जाव वीईवयमाणे देवदत्तं दारियं उप्पिं आगासतलगंसि कणगतिंदूसेणं कीलमाणिं पासइ, देवदत्ताए दारियाए जोव्वणेण य रूवेण य लावण्णेण य जाव विम्हिए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-कस्स णं देवाणुप्पिया! एसा दारिया किं वा णामधेज्जेणं? तए णं ते कोडुंबियपुरिसा वेसमणरायं करयल० एवं वयासी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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