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________________ नववां अध्ययन - सिंहसेन का दुष्कृत्य १७६ .......................................................... जाय तब ही वहाँ नवीनता ही प्रतीत हो) हो, इस आज्ञा का प्रत्यर्पण करो अर्थात् कूटाकार शाला बनवा कर मुझे सूचित करों। तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष दोनों हाथ जोड़ यावत् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि रख कर स्वीकार करते हैं, स्वीकार करके सुप्रतिष्ठित नगर के बाहर पश्चिम दिशा में एक विशाल कुटाकारशाला तैयार कराते हैं जो कि सैकड़ों खंभों वाली प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थी, तैयार करा कर जहाँ पर सिंहसेन राजा था वहाँ पर आकर उस आज्ञा का प्रत्यर्पण करते हैं। अर्थात् आपकी आज्ञानुसार कूटाकारशाला तैयार करा दी गई है, ऐसा निवेदन करते हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में महारानी श्यामा का चिंतातुर होना तथा उसकी चिन्ता को दूर करने के लिए महाराजा सिंहसेन द्वारा अपने अनुचरों को नगर के बाहर एक विशाल कूटाकारशाला के निर्माण का आदेश देना और उसके आदेशानुसार कूटाकारशाला का तैयार हो जाना आदि का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार उस कूटाकारशाला से क्या काम लिया जाता है? इस का वर्णन करते हैं - सिंहसेन का दुष्कृत्य ____ तए णं से सीहसेणे राया अण्णया कयाइ एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाइं पंचमाइसयाइं आमंतेइ। तए णं तासिं एगूणपंचदेवीसयाणं एगूणपंचमाइसयाई सीहसेणेणं रण्णा आमंतियाई समाणाई सव्वालंकारविभूसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपइटे णयरे जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवागच्छंति। तए णं से सीहसेणे राया एगूणपंचण्हं देवीसयाणं एगूणगाणं पंचण्हं माइसयाणं कूडागारसालं आवासं दलयइ। तए णं से सीहसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! विउलं असणं० उवणेह सुबहुं पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारं च कूडागारसालं साहरह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव साहरेंति। - तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणपंचमाइसयाई सव्वालंकार विभूसियाइं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ आसाएमाणा० गंधव्वेहि य णाडएहि य उवगीयमाणाई उवगीयमाणाई विहरंति। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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