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________________ आठवां अध्ययन - पूर्वभव-पृच्छा १५६ से युक्त शरीर वाली थी। उस समुद्रदत्त मत्स्यबंध का पुत्र एवं समुद्रदत्ता भार्या का आत्मज शौरिकदत्त नामक एक बालक था जो कि सर्वांग संपूर्ण एवं सुंदर था। विवेचन - आर्य सुधर्मा स्वामी के प्रधान शिष्य श्री जम्बू स्वामी ने दुःखविपाक के सातवें अध्ययन का भाव सुन कर विनम्रता पूर्वक इस प्रकार निवेदन किया कि - हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें अध्ययन का जो भाव फरमाया वो मैंने आपके श्रीमुख से सुना। अब मुझे आठवें अध्ययन का भाव जानने की उत्कंठा जगी है अतः आप कृपा कर दुःखविपाक सूत्र का आठवां अध्ययन फरमाने की कृपा करें। इन्हीं भावों को सूत्रकार ने 'अट्ठमस्स उक्खेवो' पद से व्यक्त किया है। जंबू स्वामी के निवेदन पर आर्य सुधर्मा स्वामी ने आठवें अध्ययन का प्रारंभ करते हुए जो भाव फरमाये, वे भावार्थ से स्पष्ट है। अब सूत्रकार भगवान् महावीर स्वामी के शौरिकपुर नगर में पधारने और भगवान् गौतम स्वामी द्वारा देखे गये करुणाजनक दृश्य आदि का वर्णन करते हैं • पूर्वभव-पृच्छा - तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं संमएणं० जेट्टे सीसे जाव सोरियपुरे णयरे उच्चणीयमज्झिमाई कुलाइं० अहापज्जत्तं समुदाणं गहाय सोरियपुराओ णयराओ पडिणिक्खमइ, . पडिणिक्खमित्ता तस्स मच्छंध पाडगस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे महइ- . महालियाए मणुस्सपरिसाए मज्झगयं पासइ एगं पुरिसं सुक्कं भुक्खं णिम्मंसं अट्ठिचम्मावणद्धं किडिकिडियाभूयं णीलसाडगणियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाई कलुणाई वीसराइं उक्कूवमाणं अभिक्खणं अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किभिकवले य वम्ममाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए ५ पुरा-पोराणाणं जाव विहरइ, एवं संपेहेंइ, संपेहेत्ता जेणेव समणे भगवं.....जाव पुव्वभवपुच्छा जाव वागरणं-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे णंदिपुरे णामं णयरे होत्था, मित्ते राया। तस्स णं मित्तस्स रण्णो सिरीए णामं महाणसिए होत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे॥१३५॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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