SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध पुरिमताले णयरे महाबलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं दंडे आणत्ते गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सालाडविं चोरपल्लिं विलुपाहि अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि गेण्हित्ता ममं उवणेहि, तए णं से दंडे महया भडधडगरेणं जेणेव सालाडवी. चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥७॥ ___कठिन शब्दार्थ - चारपुरिसा - गुप्तचर पुरुष, उवणेहिं - उपस्थित करो, भडचडगरेणंसुभटों के समूह के साथ। भावार्थ - तदनन्तर उस अभग्नसेन चोर सेनापति के गुप्तचरों को इस सारी बात का पता लग गया वे शालाटवी चोरपल्ली में जहाँ पर अभग्नसेन चोर सेनापति था, वहाँ पर आये और दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके इस प्रकार बोले - 'हे स्वामिन्! पुरिमताल नगर में महाबल राजा ने महान् योद्धाओं के समुदाय के साथ दण्डनायक को आज्ञा दी है कि तुम जाओ और जाकर शालाटवी चोरपल्ली को विनष्ट कर दो, लूट लो, लूट कर अभग्नसेन चोरसेनापति को जीते जी पकड़ कर मेरे सामने उपस्थित करो। राजा की आज्ञा को शिरोधार्य कर दण्डनायक ने योद्धाओं के साथ शालाटवी चोर पल्ली में जाने का निश्चय किया है।' अभग्नसेन की योजना तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसिं चारपुरिसाणं अंतिए एयमलृ सोच्चा णिसम्म पंचचोरसयाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले णयरे महाबले जाव तेणेव पहारेत्थ गमणाए (आगए, तए णं से अभग्गसेणे ताई पंचचोरसयाई एवं वयासी-) तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तं दंडं सालाडविं चोरपल्लिं असंपत्तं अंतरा चेव पडिसेहित्तए। तए णं ताई पंचचोरसयाइं अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तहत्ति जाव पडिसुणेति। तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ उवक्खडावेत्ता पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं पहाए जाव पायच्छिते भायणमंडवंसि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ आसाएमाणे ४ विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभए पंचहिं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy